- शरत कमल ने हाल ही में खेल रत्न प्राप्त किया है। खेल की दुनिया में उनका सफर आसान नहीं रहा, उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
‘आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी इलाके में रहने वाले दो भाई श्रीनिवास राव और मुरलीधर राव को टेबल टेनिस से जुनून की हद तक प्यार हो जाता है। दोनों को महसूस होता है कि यहां अच्छी ट्रेनिंग नहीं मिल पाएगी और उनका मशहूर टेबल टेनिस प्लेयर बनने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा, इसलिए वो चेन्नई शिफ्ट होते हैं। दोनों स्टेट लेवल प्लेयर बनते हैं, श्रीनिवास नेशनल लेवल कोच बनने तक का सफर पूरा करते हैं।
श्रीनिवास जब कोचिंग कर रहे थे, तो वो अपने छोटे-से बेटे को भी साथ ले जाते थे कि वो खेल देख-समझ सके। यह बच्चा मैं था। 12 जुलाई 1982 को मेरा जन्म हुआ। मैंने बचपन से ही टीटी देखा और पसंद किया है। खेलना चार साल की उम्र से शुरू किया, तब टेबल तक भी नहीं पहुंच पाता था। पापा और चाचा मुझे गोद में लेते थे, तब मैं शॉट लगाता था।
मैं खेल में ठीक-ठाक था। स्टेट लेवल पर रैंकिंग ठीक रहती थी, लेकिन नेशनल लेवल पर काफी नीची। 14 साल की उम्र में मैंने तय किया कि मुझे प्रोफेशनल टीटी प्लेयर बनना है। पापा मेरे फैसले से खुश थे। मैं 12 घंटे मेहनत करता। टेबल पर खेलता था या जिम में वक्त बिताता था। 20 साल की उम्र तक खूब मेहनत की, लेकिन नतीजे वैसे नहीं थे। स्टेट में बेस्ट था, लेकिन नेशनल में काफी पीछे।
2002 से चीजें बदलने लगीं। मुझे सीनियर नेशनल ट्रेनिंग कैम्प के लिए बुलाया गया। 2002 के अंत तक मैं देश में नंबर चार की पोजिशन पर पहुंचा था। मैंने पहला सीनियर नेशनल फाइनल खेला। 2003 में भारत में नम्बर वन बना। यहां पहुंचकर चीजें तेज हुईं। मेहनत भी सब्र की परीक्षा लेती है। सब्र आपको रखना होगा, तभी मेहनत का फल मिलेगा। 2004 में अर्जुन अवार्ड मिलने तक मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीत चुका था और ओलिंपिक खेल चुका था। अब मैं देश में तो आगे था, लेकिन दुनिया के मुकाबले पीछे था। मैं यूरोप चला गया। दो साल में पिताजी के सारी सेविंग्स यहां खत्म कर दी। मैं इंटरनेशनल लेवल पर धीरे-धीरे ठीक हो रहा था।
2006 के मेलबर्न कॉमनवेल्थ गेम्स में हमने दो गोल्ड मेडल जीते। यहां से मुझे फेम मिला। जो मेहनत और पैसा यूरोप में लगाया था, वो जाया नहीं गया। 2011 में मेरी शादी हो गई। हमारा एक बच्चा हुआ। मेरा जीवन बदल रहा था। प्रोफेशनली चीजें बदल गईं। 2011 में मैं अपने करियर के निम्न स्तर पर था। मेरी वर्ल्ड रैंकिंग 94 थी। भारतीय टूर्नामेंट भी हारना शुरू कर दिए थे और रिओ ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया। मैंने पर्सनल कोच हायर किया। मैदान में मेहनत बढ़ाई लेकिन परिवार के मोर्चे पर भी उतनी ही एनर्जी चाहिए होती थी। पत्नी ने तय किया कि वो मेरी बेटी के साथ मायके लौटेगी। उसने मुझे कहा 2012 का ओलिंपिक छूट गया, 2016 का नहीं छूटना चाहिए। उसके लिए मेहनत करो और वापस लौटो। 2015 तक मैं फुल फॉर्म में आ गया। लेकिन तभी एक इंजरी हो गई। ऑपरेशन हुआ, चार महीने तक व्हीलचेयर पर रहा। फिर खड़े होने और खेलने की ताकत महसूस नहीं हो रही थी। परिवार का समझौता याद किया और खुद को जोड़ना शुरू किया। ओलिंपिक से छह महीने पहले उठकर खेलना शुरू किया। क्वालिफाइंग मैच से पहले की रात मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था। मैच खेला... और ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया। जो आपने सीखा है, वो जाया नहीं जाता। उतार-चढ़ाव आएंगे, आपको डटे रहना है।’
(तीन साल पहले हुए आईआईटी इंदौर के इवेंट में टीटी प्लेयर अचंता शरत कमल)
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