यह ऐसा परिवार है जिसका देशभक्ति से नाता 145 साल पुराना है। दो या तीन नहीं महू निवासी इस फैमिली की छह पीढ़ियां लगातार आर्मी में हैं। 1971 की लड़ाई में शामिल रहे चौथी पीढ़ी के रिटायर्ड ब्रिगेडियर मदन मोहन भनोट बताते हैं मेरे परदादा हवलदार जयकिशन दास ने 1878 और उनके छोटे भाई शंकर दास ने 1898 में आर्मी ज्वाइन की थी।
दूसरी, तीसरी पीढ़ी लेफ्टिनेंट कर्नल तक गई। चौथी पीढ़ी में मैंने डायरेक्ट कमीशन पाया और 1990 में ब्रिगेडियर से रिटायर हुआ। मेरे दो भाई भी सेना में रहे। पांचवी पीढ़ी में एक बेटा ब्रिगेडियर, दूसरा कैप्टन (नेवी) और भतीजी कैप्टन (एमएनएस) रहे हैं। छठीं पीढ़ी में पौता मेजर (टैंक मैन) होकर नार्दन बॉर्डर पर पदस्थ है।
इस परिवार ने कई खिताब पाए, शहीद हुए और जेल भी गए
1916 में फ्रांस में हुई लड़ाई के दौरान शंकर दास मेडिकल टीम का हिस्सा थे। उन्होंने 12 लोगों की जान बचाई थी। उन्हें इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (तब का दूसरा सर्वोच्च गैलेंट्री अवॉर्ड) मिला था। दूसरी पीढ़ी ने फर्स्ट वर्ल्ड वार, तीसरी ने सेकंड वर्ल्ड वार लड़ा। चौथी पीढ़ी के बिशंभर दास और जमनादास मलेशिया में लड़ाई के दौरान जापानियों द्वारा बंदी बना लिए गए थे। बिशंभर दास आईएनए के एक ऑपरेशन में शहीद हुए। आकाशदीप भनोट टैंक रेजीमेंट के होने के बावजूद पैराट्रूपर भी हैं। वे राष्ट्रपति अंगरक्षक के कमान अधिकारी और एनसीसी के ग्रुप कमांडर रहे।
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