जब वे एमजीएम कॉलेज में पढ़ते थे तो इतने मेडल जीतते कि लोग पूछते, इन्हें ले जाने के लिए ठेला लाए हो क्या? एमएस के लिए इंग्लैंड पहुंचे तो कुछ ही वर्षों में शीर्षस्थ कंसल्टेंट की ख्याति हासिल की। वर्षों पहले मां के गर्भ में भ्रूण की सर्जरी करने वाले गिनती के डॉक्टर्स में जगह बनाई।
हालांकि ये उनके व्यक्तित्व का सिर्फ एक पहलू है। वे इंग्लैंड में भारतीय संस्कृति के बड़े ध्वज वाहक हैं। इस्कॉन के ट्रस्टी हैं और गीता पर वर्कशॉप लेने के साथ ट्रस्ट से 15 कृष्णा अवंति स्कूल चलाते हैं, जहां बच्चों को ब्रिटिश पाठ्यक्रम के साथ भारतीय संस्कृति सिखाई जाती है।
ये हैं डॉ. संजीव अग्रवाल जो करीब 32 साल पहले पढ़ाई के लिए लंदन गए थे। तीन साल अमेरिका, कनाडा रहे और 97 में इंग्लैंड लौट गए। शुरुआत में वर्गभेद भी सहा, इंटरव्यू के लिए गए तो सुनने को मिला, आप हमारे डॉक्टर्स से तीन साल आगे हैं, चाह कर भी मना नहीं कर सकते।
जब प्राइवेट प्रैक्टिस करना चाही तब भी कड़ी प्रतिस्पर्धा थी। उन्होंने अपनी कुशलता और सदव्यवहार से लोगों का दिल जीता। कृष्ण भक्ति और सेवा के पथ पर चलते रहे। कोविड के दौरान दिल्ली में लोगों को परेशान देखा तो द्वारका क्षेत्र में हॉस्पिटल बना दिया।
लोट्स ट्रस्ट के चेयरमैन के नाते न सिर्फ लोगों को उपचार मुहैया कराया बल्कि क्षेत्र के हजारों लोगों को भोजन भी उपलब्ध कराया। आध्यात्मिकता को ही वे भारत की सबसे बड़ी ताकत बताते हैं। घर का नाम भी वृंदावन है और उन्हें पूरा भरोसा है कि एक दिन विश्व के हर घर में कृष्ण भक्ति का उदय होगा।
वर्चुअल हॉस्पिटल से पूरी दुनिया में कर रहे सेवा
डॉ. अग्रवाल ने पिछले साल ही करीब आठ हजार डॉलर खर्च कर अनूठा वर्चुअल हॉस्पिटल बनाया है। इसमें एलोपैथी के साथ आयुर्वेद, होम्योपैथी, नेचरोपैथी आदि के 175 एक्सपर्ट जुड़े हैं। ये सभी दुनिया के हर कोने में लोगों को टेलीमेडिसिन के माध्यम से बिना किसी शुल्क के चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं।
भारत में सबकुछ है सही प्रबंधन और पारदर्शिता नहीं डॉ. अग्रवाल कहते हैं भारत में पैसा, एक्सपर्ट, उपकरण सबकुछ है, लेकिन प्रबंधन सही नहीं है। ईसा से 4 सदी पहले बनी हिपोक्रेटिक ओथ कहती है कि मैं मरीज की बीमारी के अलावा कुछ नहीं देखूंगा। यहां वैसा नहीं होता, कई डॉक्टर के फैसले पैसे से प्रभावित होते हैं।
मेडिकल टूरिज्म के लिए बहुत काम करना होगा
इंग्लैंड में 7.1 मिलियन आबादी को सर्जरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। भारत में संभावना है, लेकिन सिस्टम को अकाउंटेबल बनाना होगा। अस्पतालों के रिजल्ट कहीं पब्लिश नहीं होते। बाहर से मरीज तब ही आएंगे जब उन्हें यहां सस्ता और सही इलाज मिलेगा।
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