रविवार, 22 जनवरी से माघ मास की गुप्त नवरात्रि शुरू हो रही है। गुप्त नवरात्रि वर्ष में देवी के दस महाविद्याओं के स्वरूपों की साधना की जाती है। हिन्दी पंचांग में एक साल में चार बार नवरात्रि आते है। पहली चैत्र मास में, दूसरी आषाढ़, तीसरी आश्विन में और चौथी माघ मास में। माघ और आषाढ़ माह की नवरात्रि गुप्त मानी जाती है। चैत्र और आश्विन मास की नवरात्रि को प्रकट माना जाता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक गुप्त नवरात्रि में देवी मां के दस महाविद्याओं के स्वरूपों के लिए गुप्त साधनाएं की जाती हैं। इन महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला देवी शामिल हैं।
ऋतुओं से जुड़ा है नवरात्रि का समय
पं. शर्मा कहते हैं कि नवरात्रि का समय ऋतुओं के संधिकाल से जुड़ा है। संधिकाल यानी एक ऋतु के खत्म होने का और दूसरी ऋतु के शुरू होने का समय। चैत्र मास की नवरात्रि के समय बसंत ऋतु खत्म होती है और ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है। आषाढ़ मास की नवरात्रि के समय ग्रीष्म ऋतु खत्म होती है और वर्षा ऋतु शुरू होती है। आश्विन नवरात्रि के समय वर्षा ऋतु खत्म होती है और शीत ऋतु शुरू होती है। माघ मास की नवरात्रि के समय शीत ऋतु खत्म होती है और बसंत ऋतु शुरू होती है।
ऋतुओं के संधिकाल में व्रत-उपवास करने से सेहत को मिलता है लाभ
नवरात्रि के दिनों में व्रत-उपवास किए जाते हैं। देवी मां के भक्त अन्न का त्याग करते हैं और फलाहार से भूख शांत करते हैं। पूजा-पाठ जप, तप और साधनाओं से मन शांत होता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं। फलाहार से शरीर को लाभ मिलता है और जप-तप से मन को। उपवास करने से हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है। खान-पान में संयम रखने से हम मौसम संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ी रहती है। जब हम खान-पान में संयम रखते हैं तो आलस नहीं आता है और मन पूजा-पाठ में लगा रहता है, भटकता नहीं है। पूजा-पाठ के बाद एकाग्र मन के साथ किए गए अन्य कामों में सफलता मिलती है।
गुप्त नवरात्रि की साधनाएं में रखनी होती है सावधानी
महाविद्याओं की साधनाएं सामान्य पूजा से अलग होती हैं। इसलिए ये साधनाएं अधूरी जानकारी के साथ नहीं करनी चाहिए। किसी विशेषज्ञ ब्राह्मण की मदद से देवी साधनाएं करेंगे तो बेहतर रहेगा।
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