सरकारी कैंसर हॉस्पिटल में हर माह 800 से ज्यादा मरीज रेडिएशन थैरेपी के लिए पहुंचते हैं, लेकिन 10 साल बाद भी यहां लीनियर एक्सीलरेटर मशीन की सुविधा नहीं है। कई बार प्रस्ताव बनाए गए। दो साल पहले पीपीपी मॉडल अपनाने की बात अधिकारियों ने कही। पिछले साल 5 अप्रैल को टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन 10 महीने में 25 बार तो टेंडर की तारीख ही बढ़ा चुके हैं। अब 26वीं बार टेंडर की तैयारी है।
पुरानी कोबाल्ट मशीन से चला रहे काम
अस्पताल में जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 तक 6568 कैंसर मरीज भर्ती हुए हैं। यहां अब भी पुरानी कोबाल्ट मशीन का ही उपयोग किया जा रहा है। निजी कैंसर अस्पतालों में रेडिएशन थैरेपी के लिए लीनियर एक्सीलरेटर मशीन का उपयाेग किया जा रहा है। कैंसर को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के माध्यम से भी यह सुविधा मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं करवा पा रही। डेढ़ साल से इसकी स्थापना की प्रक्रिया लंबित है। 2019 से सिर्फ फाइल ही बन रही है।
3 साल से कोशिशें, जर्जर हो चुकी बिल्डिंग के लिए भी बजट नहीं
कैंसर अस्पताल की जर्जर बिल्डिंग के लिए सरकार के पास बजट नहीं है। इसके लिए भी दो-तीन साल से कोशिशें की जा रही हैं। नया अस्पताल बनाने के लिए 80 करोड़ का खर्च अनुमानित है, जबकि राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार 2 शहरों में नए अस्पताल के लिए बजट दे चुकी है। अच्छा इलाज मिलना हर मरीज का बुनियादी हक है लेकिन आयुष्मान मरीजों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है।
कैंसर सेल्स को टारगेट करता है, लीनियर एक्सीलरेटर इसलिए बेहतर
कैंसर के मरीजों को रेडिएशन थैरेपी के लिए सबसे पहले कोबाल्ट मशीन आई। लीनियर एक्सीलरेटर मशीन की खासियत यह है कि यह सटीक रूप से उसी जगह टारगेट करता है, जहां कैंसर के सेल्स मौजूद रहते हैं। यह मशीन 5 से 10 करोड़ में आती है। 10 साल में भी लीनियर एक्सीलरेटर मशीन स्थापित क्यों नहीं हो सकी, इस बारे में डीन डॉ. संजय दीक्षित कहते हैं लीनियर एक्सीलरेटर के लिए टेंडर प्रक्रिया भोपाल से होना है। स्थानीय स्तर पर कुछ नहीं है।
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