तुर्किये, सीरिया, लेबनान और इजराइल सोमवार को जबरदस्त भूकंप से दहल उठे। 7.8 और 7.6 की तीव्रता वाले झटकों ने इन पड़ोसी देशों में करीब 4,300 लोगों को मौत की नींद में सुला दिया। राहत और बचाव अभियान जारी है, लेकिन लाशें मिलने का सिलसिला भी थम नहीं रहा है।
खराब मौसम और महंगाई का संकट झेल रहे तुर्किये में हालात बेहद खराब हैं। यहां मौतों का आंकड़ा भी 1,500 से ज्यादा हो चुका है। दूसरी तरफ, सिविल वॉर वाले सीरिया के बारे में तो सिर्फ वही पता लग रहा है जो वहां के जर्नलिस्ट इंटरनेशनल न्यूज एजेंसियों को बता रहे हैं।
इस भूकंप के बाद कुछ कहानियां भी सामने आ रही हैं। हम यहां ऐसी ही तीन कहानियां आप तक पहुंचा रहे हैं।
तुर्किये : दूसरों को बचाने गया, खुद का परिवार खत्म हो गया
- तुर्किये के अजमारिन में रहने वाले फरहाद ने अमेरिकी न्यूज चैनल CNN से बातचीत की। उनकी कहानी दिल को झकझोर देने वाली है। फरहाद कहते हैं- मेरे मुल्क में मौसम बहुत खराब चल रहा है। रोज बर्फबारी और बारिश हो रही है। उस वक्त रात के करीब चार बज रहे थे। मुझे कांच टूटने की आवाज आई। पहली बार में लगा जैसे किसी ने बाहर से पत्थर मारा है। मैंने उठकर देखना चाहा तो पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे।
- फरहाद कहते हैं- मैं फौरन समझ गया कि भूकंप आया है। बहुत तेजी से चीखा और परिवार के बाकी 5 सदस्यों को उठाया। सब बाहर की तरफ भागे। पेरेंट्स बुजुर्ग थे। वो सही वक्त पर नहीं निकल सके। गैरेज का एक बड़ा हिस्सा उनके ऊपर आ गिरा। कई घंटे बाद उनके शव मिले।
- जब पेरेंट्स को निकाल रहा था, तब पत्नी और बेटा सड़क के किनारे खड़े थे। इसी वक्त दूसरा झटका आया और करीब की एक बिल्डिंग चंद सेकंड में गिर गई और फिर सब-कुछ मेरी आंखों के सामने खत्म। समझ नहीं आता अब कहां जाउंगा, किसके लिए जिऊंगा।
सीरिया : लाशें निकालते-निकालते कलेजा पत्थर हो गया
सीरिया के सिविल डिफेंस से जुड़े एक अफसर ने तुर्किये की वेबसाइट TRT WORLD को वॉट्सअप पर इंटरव्यू दिया। कहा- यह तो डिजास्टर से भी भयानक है। मैं नहीं समझ सकता कि इसे क्या कहूं, आप ही कोई नाम सोच लीजिए। लाशें निकालते-निकालते हम थक चुके हैं। हर मिनट किसी न किसी मलबे से एक लाश बाहर निकाल रहे हैं। सच्चाई ये है कि हमारी ये हैसियत ही नहीं कि इस तरह के डिजास्टर को हैंडल कर सकें।
यह अफसर आगे कहता है- अब सिर्फ दुनिया ही हमें इस मौत के दलदल से निकाल सकती है। हम उनके आगे रहम और मदद की भीख मांगते हैं। हम भी इंसान हैं, पहले ही मुश्किल में थे। अब तो लगता है कि जैसे सब-कुछ खत्म हो गया। मैं नहीं जानता कि कुल कितने लोग इस मुल्क में मारे गए हैं। कई इलाकों तक तो हमारी पहुंच ही नहीं है। बस इतना कह सकता हूं कि मरने वालों का आंकड़ा उसकी सोच से कई गुना ज्यादा होगा। जो बच गए हैं, वो सिविल वॉर वाले इस देश में बच सकेंगे, उन्हें इलाज मिल सकेगा? मुझे तो नहीं लगता।
तुर्किये : लोगों को बचाते-बचाते दोस्त मारा गया
- गजियनटेप में रहने वाले इरदिम और उनका परिवार इस इलाके में रह रहा था। वो खुशकिस्मत रहे कि उनका परिवार किसी तरह बच गया। उनके घर से निकलने के बाद उनका दो मंजिला मकान ताश के पत्तों की तरह ढह गया। कुछ जानवर वहां रह गए थे, उनका अब तक कोई पता नहीं चल सका है।
- इरदिम को परिवार के बचने का सुकून है और वो इसके लिए ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हैं। फिर कुछ देर बाद आसमान की तरफ एकटक देखते हैं। BBC रिपोर्टर जब उन्हें टोकता है तो इरदिम रोते हुए कहते हैं- 40 साल हुए इस कॉलोनी में रहते हुए। रात को ही तो मैंने अपने जिगरी दोस्त शियाद को डिनर के लिए घर बुलाया था। वो दो मकान छोड़कर रहता था।
- इरदिम की आंखें मनमानी पूरी करके ही मानती हैं। मिट्टी लगी शर्ट की बांह से आंसू पोंछते हुए वो आगे कहते हैं। मैं परिवार के साथ सड़क पर खड़ा था। सामने एक मकान गिर रहा था। शियाद मेरे बच्चों को हौसला दे रहा था कि सब ठीक हो जाएगा। उसी वक्त वो मकान ढह गया। शियाद बच्चों को छोड़कर मलबे में दबे लोगों को बचाने दौड़ा। वो वहां पहुंचा तभी मकान का आखिरी बचा हिस्सा उसके ऊपर आ गया। कुछ देर पहले उसकी आंखें बंद हुई हैं, हमेशा-हमेशा के लिए।
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