मप्र सरकार इसी हफ्ते हेरिटेज शराब के उत्पादन और बेचने के नियम जारी करने वाली है। इसके बाद पूरे प्रदेश में इसका उत्पादन होगा। इसका लाइसेंस न्यूनतम 500 से लेकर अधिकतम 1000 रुपए में मिल जाएगा। उत्पादन मशीन की क्षमता भी अधिकतम 1000 ली. तक की ही होगी। इससे ज्यादा शराब एक दिन में नहीं बना सकेंगे।
अभी सरकार ने टेस्ट ट्रायल के तौर पर प्रदेश के दो जिले डिंडोरी और आलीराजपुर में इसके प्लांट लगाए थे। आबकारी विभाग के मुताबिक ये पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा है। क्षमता को लेकर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि एक दिन में भले ही दो या तीन मशीन शराब बनाएं, लेकिन इसी मात्रा एक बार में एक हजार लीटर से अधिक नहीं होगी। विभाग ने डेढ़ माह पहले नियम पर दावे-आपत्ति बुलाने के लिए अधिसूचना जारी की थी। इसके बाद तमाम सुझावों को शामिल करते हुए ड्रॉफ्ट तैयार कर लिया गया है। सूत्रों के मुताबिक इसे दो-तीन दिन में लागू कर दिया जाएगा।
नियमों में ये खास बिंदु
- आदिवासी स्व सहायता समूहों ही लाइसेंस के लिए पात्र माना जाएगा।
- लाइसेंस लेने के बाद ब्रांडिंग या अन्य सहायता के लिए स्वसहायता समूह बाहरी व्यक्ति से एग्रीमेंट कर सकता है।
- कंपोजिट या देशी या विदेशी शराब की दुकानों पर यह नहीं मिलेगी।
- वाइन शॉप के साथ हेरिटेज शराब सिर्फ पर्यटन निगम के बार व निजी बार में मिलेगी।
- हर स्वसहायता समूह अपने उत्पाद का अलग नाम रख सकता है।
- स्वसहायता समूह उत्पादन के हिसाब से शराब की कीमत तय करेंगे, जिसकी निगरानी आबकारी विभाग करेगा।
- जिले में एक से अधिक स्वसहायता समूहों को भी लाइसेंस मिल सकता है।
कैबिनेट में नहीं आएगा प्रस्ताव
इसके लिए कैबिनेट में प्रस्ताव ले जाने की जरूरत नहीं होगी। चुनावी साल में नियम लाने का सत्तारुढ़ दल को सियासी फायदा भी मिल सकता है। मप्र में आदिवासी वर्ग महुए से शराब बनाने का काम करता है। इसे नियमों में लाना और लाइसेंस देकर समूहों को आगे लाने से आदिवासियों को प्रभावित किया जा सकता है।
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