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टाइगर प्रोजेक्ट:मध्यप्रदेश फिर बनेगा टाइगर स्टेट, संख्या 706 होने का अनुमान; बाघों के लिए जगह नहीं बढ़ाई तो वे इंसानी बस्तियों में घुसेंगे

देश में टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे, मप्र को चाहिए 35 हजार वर्ग किमी एरिया, अभी 10 हजार वर्ग किमी ही हमारे पास - Dainik Bhaskar

देश में टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे, मप्र को चाहिए 35 हजार वर्ग किमी एरिया, अभी 10 हजार वर्ग किमी ही हमारे पास

देश में आज से 50 साल पहले यानी एक अप्रैल 1973 को बाघों को बचाने के लिए टाइगर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। शुरुआत में इसमें 9 टाइगर रिजर्व थे। इनमें मप्र का एक कान्हा रिजर्व शामिल था। आज मप्र के 6 टाइगन रिजर्व बाघों से भरे पड़े हैं। नई गणना में इनकी संख्या 706 होने का अनुमान है। लेकिन मप्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती है बाघों और इंसानों की लड़ाई रोक पाना। दरअसल, इन 6 टाइगर रिजर्व में अभी 10 हजार वर्ग किमी जगह है, जबकि 706 टाइगर को रखने के लिए 35 हजार वर्ग किमी जगह चाहिए। 2006 में पन्ना टाइगर रिजर्व में एक बाघ नहीं था, आज 83 हैं।

इन 6 रिजर्व की क्षमता सिर्फ 205 बाघों की है, लेकिन यहां तीन गुना टाइगर रह रहे हैं। यही वजह है कि 2 साल में 39 टाइगर आपस में लड़कर मर गए। देश के जाने माने वन्य जीव एक्सपर्ट राजेश गोपाल कहते हैं कि हम अपनी मैक्सीमम केयरिंग कैपीसिटी पर पहुंच गए हैं। अब बाघों के लिए ऐसा अनुकूल कॉरिडोर बनाने की जरूरत है जिससे आम लोगों और व्यापारियों को सीधा लाभ हो। वरना जंगल की जमीन कम हो रही है और बाघ बढ़ रहे हैं तो अब इससे ज्यादा बाघ इंसानों के लिए खतरा बन जाएंगें। मप्र में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जगवीर सिंह चौहान कहते हैं कि अब सबसे बड़ी चुनौती जंगलों का कटना है। सभी रिजर्व पार्क के बफर एरिया में घास के मैदान घट रहे हैं तो बाघों के लिए फूड यानी हिरन जैसे जानवर कम हो रहे हैं। पट्‌टे, हाइवे, नहरें जंगल के बीच में निकल रही हैं।

टाइगर रिजर्व की जगह अब सेंचुरियों में भी देख सकेंगे पर्यटक बाघ

बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब प्रदेश की खाली पड़ी सेंचुरियों में बाघों को बसाया जा रहा है ताकि बढ़ती संख्या काे देखते हुए टाइगर मैनेंजमेंट हो सके। इसके ही तहत रातापानी, नोरादेही, सिंघोरी, खिवनी, गांधी सागर जैसी 24 सेंचुरियों में शाकाहारी वन्य प्राणियों को बसाया जा रहा है। इन सेंचुरियों के कोर एरिया में ग्रासलैंड बढ़ाए जा रहे हैं।

फायदा- बाघ बढ़े, जंगल घने हुए, ईको सिस्टम बेहतर हुआ

टाइगर प्रोजेक्ट के तहत चार फायदे हुए हैं। 10 हजार वर्ग किमी में घने जंगल सुरक्षित रहे। बाघ बढ़े। ईको सिस्टम बेहतर हुआ। दूसरे जानवर भी संरक्षित हुए। 1973 में कान्हा में केवल 66 बारहसिंघा बचे थे। अब 1200 से ज्यादा हैं। चिड़ियाें से लेकर तेंदुओं तक सब काफी संख्या में हैं। इस समय प्रदेश में लगभग 3500 तेंदुए हैं। टाइगर रिजर्व से सालाना अनुमानित 1 हजार करोड़ का व्यवसाय होता है। प्रदेश के 1 लाख लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष टाइगर टूरिज्म से जुड़े हैं।

बांधवगढ़ में सबसे ज्यादा 220 बाघ, रिजर्व क्षमता सिर्फ 31 की
बांधवगढ़ में सबसे ज्यादा 220 बाघ, रिजर्व क्षमता सिर्फ 31 की

(*2022 की गणना अभी नहीं आई है। बाघों की संख्या वन विभाग के सूत्रों ने शावकों की संख्या और कैमरे ट्रेप के आधार पर अनुमानित दी जा रही है। टाइगर रिजर्व में बाघों के रहने की क्षमता को उनकी टेरेटरी के अनुसार निकाला जाता है। एक्सपर्ट के अनुसार बाघ की टेरेटरी अनुमानित 60-70 वर्ग किमी और बाघिन की 40-45 वर्ग किमी होती है। एवरेज 50 वर्ग किमी की जगह एक बाघ या बाघिन के लिए चाहिए।)

देश में एक हजार बाघ और अफोर्ड कर सकते हैं

1969 में टाइगर को लेकर ओडिशा के फोरेस्ट ऑफिसर ने एक रिपोर्ट सौंपी थीं। तब 1857 टाइगर पूरे देश में थे। इसके बाद 1 अप्रैल 1973 को टाइगर प्रोजेक्ट आया और अब संख्या 2967 है। भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.3% एरिया टाइगर रिजर्व में आ गया है। इसका बड़ा फायदा ये हुआ कि रिजर्व एरिया के जंगल सुरक्षित हैं और 50 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज से ये बहुत बेहतर बात है। लेकिन बाघों की संख्या की बात करें तो ये हमारी अपर लिमिट या केयरिंग कैपेसिटी कह सकते हैं। अब हम इससे आगे ज्यादा से ज्यादा 1 हजार टाइगर अफोर्ड कर सकते हैं। इससे ज्यादा पर टाइगर इंसान के लिए नुकसान पहुंचाने वाला बन जाएगा। अब समय आ गया है कि सभी स्टॉक होल्डर यानी हर आदमी जैसे सरकारी-निजी विभागों के साथ ठेकेदारों और आम लोगों को टाइगर से जोड़ना होगा। ग्रीन बिजनेस कांसेप्ट अपनाना होगा। बाघ को एक ऐसा कॉरिडोर देना होगा जिससे वो बिना शोर-शराबे के रह सके और लोगों को भी फायदा मिले।
- राजेश गोपाल, जनरल सेकेटरी, ग्लोबल टाइगर फोरम (पूर्व सदस्य टाइगर प्रोजेक्ट)

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