- डेवलपमेंट फाउंडेशन ने जल स्रोतों के संरक्षण की बात कही, अवैध निर्माण को सबसे बड़ा मुद्दा बताया
शहर का ऐसा विकास चिंता में डालने वाला है। 40 साल में 850 कुएं-बावड़ी कैसे समाप्त हो गए, जवाब किसी के पास नहीं है। आबादी के हिसाब से जहां 10 फीसदी हरियाली रहना चाहिए, वहां 2 फीसदी भी नहीं है। विकास के नाम पर अवैध निर्माण आज सबसे बड़ा मुद्दा है।
डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा मंगलवार को आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने यह चिंता जाहिर की। आपदा प्रबंधन पर चिंता जताने के साथ कहा हैरत की बात है कि वर्ष 1982 में शहर में 1400 कुएं-बावड़ी निगम के रिकॉर्ड में थे, जिनकी संख्या 2023 में 550 रह गई है।
- 1400 कुएं-बावड़ी थे 1982 में
- 550 रह गए वर्ष 2023 में
- 550 वर्ग किलोमीटर का मास्टर प्लान बना था 35 लाख की आबादी के हिसाब से
30 प्रतिशत कंपाउंडिंग की राशि लेकर अवैध को वैध बताया गया
सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने कहा कि 35 लाख की आबादी के हिसाब से 550 वर्ग किलोमीटर का मास्टर प्लान बना था। उस समय यह 33 प्रतिशत सिर्फ जल स्रोतों के लिए था और 67 प्रतिशत निवेश के लिए था। डेवलपमेंट को दरकिनार कर अवैध निर्माण होने दिया गया। 30 प्रतिशत कंपाउंडिंग की राशि लेकर अवैध को वैध बता दिया गया। अब स्थिति यह है कि शहर की आबादी 35 लाख पार हो चुकी है जबकि नगर निगम की शहरी सीमा 273 वर्ग किमी है। 6 वार्ड ऐसे हैं, जहां की आबादी 1 से 2 लाख है। बगीचों में निर्माण कर दिए गए हैं। कुएं-बावड़ी भर दिए गए हैं। अन्य जगह पर मल्टियां खड़ी कर दी गई हैं।
सरवटे व रानीपुरा जैसे हादसे आपदा प्रबंधन की पोल खोल चुके
आपदा प्रबंधन की पोल सरवटे बस स्टैंड व रानीपुरा जैसे खोल चुके हैं। ग्वालटोली क्षेत्र में सीवरेज लाइन के कारण मजदूर की मौत के मामले में भी इसकी बानगी देखने को मिली। अब जो जलस्रोत बचे हैं, वह सूख रहे हैं। तालाब एक से चार फीट तक सूख गए। पानी का संरक्षण नहीं कर रहे हैं। कोई प्लानिंग नहीं है।
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