ऑर्गन डोनेशन के दौरान इस्तेमाल होने वाले ट्रांसप्लांट फ्लूइड का उत्पादन देश में पहली बार इंदौर में होगा। अब तक यह फ्लूइड यूएस और यूके से आयात किया जाता रहा है। एक साल से किए जा रहे प्रयास के बाद इंदौर की दवा कंपनी ने फ्लूइड बनाने की तैयारी पूरी कर ली है। जून से उत्पादन शुरू हो जाएगा।
यूएस-यूके से यह फ्लूइड करीब 50 हजार रुपए प्रति 1000 एमएल की दर से आता है, इंदौर में आधी (करीब 25 हजार रुपए) कीमत में तैयार होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) से फ्लूइड निर्माण की अनुमति मिल गई है। इंदौर में हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट में उपयोग होने वाले फ्लूइड का निर्माण होगा। किडनी ट्रांसप्लांट में उपयोग होने वाले फ्लूइड जरूर गुजरात में बनता है।
जर्मनी से आई मशीन, पूरा प्रोडक्शन ऑटोमेशन पर होगा
रसोमा लेबोरेटरीज के डायरेक्टर तपन शर्मा ने बताया, फ्लूइड बनाने के लिए जर्मनी से मशीन इम्पोर्ट की गई है। पूरा प्रोडक्शन ऑटोमेशन से होगा, मानवीय हस्तक्षेप नहीं होगा। हार्ट और लंग्स के लिए फ्लूइड बनाया जाएगा। 1 और 2 हजार एमएल की बैग्स में सप्लाय होगा। देश में पहली बार इनका उत्पादन किया जाएगा। 20 से अधिक देशों में एक्सपोर्ट भी करेंगे। यूएस और यूके की तुलना में आधी कीमत में उत्पादन होगा।
14 दिन में होता है तैयार
फ्लूइड की एक बैच बनने में 14 दिन लगते हैं। बनने के बाद तय मानक पर 14 दिन स्टोर करना पड़ता है। कोई बदलाव नहीं होने पर बैच प्लांट डिस्पैच की जाती है।
ट्रांसप्लांट फ्लूइड में खराब नहीं होता ऑर्गन
ऑर्गन डोनेशन के समय ऑर्गन निकालने के बाद इस फ्लूइड में डाला जाता है और अन्य व्यक्ति में लगाने तक इसी में रखा जाता है। इसमें रखने से तय समय तक ऑर्गन खराब नहीं होता है।
अंगदान में भी इंदौर आगे, 8 साल में 1022
ट्रांसप्लांट फ्लूइड बनाने से पहले ऑर्गन डोनेशन में भी इंदौर देश के शीर्ष शहरों में है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी तारीफ की थी। पिछले 8 साल में इंदौर से 1022 ऑर्गन डोनेट किए जा चुके हैं। 2015 से सिलसिला शुरू हुआ था। कई शहरों में भी इंदौर से ऑर्गन भेजे जा चुके हैं। पहले ऑर्गन ट्रांसप्लांट सिर्फ एक अस्पताल में होता था, अब संख्या बढ़कर 19 हो गई है।
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