संत सूरदास से जुड़ा किस्सा है। उनके पिता रामदास जी गायक थे और वे ब्राह्मण थे। उनका परिवार बहुत ही गरीब था, इस कारण एक समय का खाना भी मुश्किल से ही मिल पाता था। रामदास जी भजन गाते और बालक सूरदास सुनता था।
कुछ समय बाद बालक सूरदास भी भजन के बोल सीख गए और गाने लगे। सूरदास के बारे में कहा जाता है कि वे जन्म से ही अंधे थे। समय के साथ सूरदास की धर्म-कर्म में रुचि बढ़ गई। पिता को चिंता होने लगी कि इस बालक का क्या होगा?
एक दिन सूरदास जी के जीवन में वल्लभाचार्य जी आए। गांव के बाहर नदी के किनारे पर इनकी भेंट हुई थी। वल्लभाचार्य जी ने सोचा कि ये बालक ऐसे ही बोलता रहा, सुनाता रहा तो भटक जाएगा। इसके ज्ञान को और इसकी योग्यता को सही दिशा देनी होगी। इसके बाद उन्होंने सूरदास जी को अपना शिष्य बना लिया।
वल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को श्रीकृष्ण की लीलाओं के बारे में बताया। श्रीनाथ जी के मंदिर में कृष्ण लीला गान करने की जिम्मेदारी सूरदास को सौंप दी। इसके बाद सूरदास जी जीवन भर श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करते रहते थे।
सूरदास जी को गुरु के रूप में वल्लभाचार्य जी मिले थे। गुरु के द्वारा दिखाए गए सही रास्ते पर सूरदास जी चले और उनका जीवन बदल गया, उनकी सारी समस्याएं खत्म हो गईं।
प्रसंग की सीख
इस प्रसंग में हम ये बात सीख सकते हैं कि जिन लोगों के जीवन में अच्छे गुरु हैं, उनका जीवन सकारात्मक रहता है। सकारात्मक रहने वाले व्यक्ति की सभी समस्याएं बहुत ही जल्दी खत्म हो सकती हैं। हमेशा सुखी रहना चाहते हैं तो दो काम जरूर करें। पहला, किसी अच्छे व्यक्ति को गुरु बनाएं और गुरु के द्वारा बताई गई शिक्षाओं को जीवन में उतारिए। दूसरा काम, रोज थोड़ा समय खुद के लिए भी निकालें और ध्यान करें। ध्यान करने से नकारात्मकता दूर होती है और हम सही काम करने के लिए प्रेरित होते हैं।
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