नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा बनता देख भाजपा ने बड़ा दांव खेला है। केंद्र सरकार ने खाद्य पदार्थों के दामों पर नियंत्रण के लिए जनवरी से मार्च के बीच एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) के माध्यम से गेहूं के बफर स्टॉक की नीलामी 2150 रु. प्रति क्विंटल में की। अकेले मप्र ने चार लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेहूं बेचा, जबकि देशभर में 33 लाख 75 हजार मीट्रिक टन से अधिक गेहूं बेचा गया, जिसे निजी व्यापारियों, आटा-मैदा मिल व आटा संचालकों ने खरीदा।
इसका असर यह हुआ कि मप्र में सामान्य गेहूं के दाम 550 रुपए प्रति क्विंटल तक गिर गए, उप्र में 605 रु. व तेलंगाना में 300 से 400 रु. प्रति क्विंटल भाव कम हुए हैं। लेकिन बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि ने मुश्किलें फिर बढ़ा दी। मप्र सरकार ने केंद्र से 10 से 80% दागी गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदने की अनुमति मांग ली। केंद्र ने सशर्त अनुमति दी और कहा- गेहूं खराब हुआ तो इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। शिवराज सरकार को अनुमति मिलते देख पंजाब-हरियाणा सरकार ने भी उस आदेश को आधार मानकर अनुमति ले ली। वहीं दाल और चीनी के स्टॉक पर भी पाबंदी लगाने की तैयारी चल रही है ताकि कोई भी खाद्य पदार्थों का संग्रहण कर उसका मूल्य बढ़ा न सके। यही नहीं केंद्र सरकार ने अब हर तीन महीने में भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से गेहूं के बफर स्टॉक के नीलामी के आदेश जारी कर दिए हैं।
मध्यप्रदेश- 2150 रुपए/क्विंटल में बेचा, तब बाजार भाव 2945 रुपए था
जनवरी से मार्च के बीच भारतीय खाद्य निगम ने 2150 रु./क्विंटल के भाव से खुले बाजार में चार लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचा, जबकि उस वक्त गेहूं का भाव बाजार में 2945 रुपए चल रहा था। बाजार में बफर स्टॉक का गेहूं आते ही भाव 2945 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल तक आ गए। अब मार्केट में 1900 से 2040 रुपए. प्रति क्विंटल तक सामान्य गेहूं मिल रहा है। इसका उपयोग आम आदमी करता है।
इस साल 300 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी होने की संभावना
इस साल गेहूं की खरीदी बीते साल की तुलना में 300 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच सकती है। अब तक देशभर में 200 लाख मीट्रिक टन की खरीदी हो चुकी है। उप्र, बिहार व राजस्थान में खरीदी धीरे चल रही थी, लेकिन बाद में एफसीआई, कृषि सहकारी संस्था नाफेड ने वहां अपने 500 से ज्यादा उपार्जन केंद्र बढ़ा दिए हैं। इतना ही नहीं अगर चीनी सीजन में 60 लाख टन से कम स्टॉक होता है तो उसका निर्यात भी नहीं हो सकेगा यानी साफ है कि गेहूं की तरह चीनी के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग सकता है क्योंकि फसल वर्ष 2022-2023 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए घरेलू चीनी उत्पादन बीते साल के 359 लाख मीट्रिक टन की तुलना में लगभग 327 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
निर्णय लेने का कारण
गेहूं के भाव 16% तक बढ़ गए थे क्योंकि उप्र व बिहार में 3050 और राजस्थान में 2800 रुपए प्रति क्विंटल तक गेहूं बिक रहा था। हालत ये थी कि उप्र को भी गुजरात से खरीदी करना पड़ रही थी। उस वक्त खुले बाजार में गेहूं नहीं था और जो था वह रूस-युक्रेन युद्ध समय एक्सपोर्ट हो गया था। इससे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत गेहूं का आवंटन कुछ समय के लिए रोका गया था।
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