सड़क चौड़ीकरण सहित ट्रैफिक व्यवस्थाएं बेहतर करने के लिए शहर ने 10 साल में करीब पांच हजार करोड़ रु. की जमीन दी। पांच साल में सामाजिक संस्थाओं ने यातायात पुलिस को लगभग 15 करोड़ के बैरिकेड्स दिए हैं। तीन करोड़ के कैमरों के साथ ही 2 हजार घरों के कैमरों की लाइव फीड पुलिस को दी जा रही है।
50 से अधिक सामाजिक संस्थाएं, संगठन और शैक्षणिक इकाइयां यातायात जागरूकता के लिए सतत काम कर रही हैं, लेकिन सरकार पर्याप्त पुलिस बल तक उपलब्ध नहीं करा पा रही है। 850 स्वीकृत पदों पर मात्र 380 का स्टाफ ट्रैफिक अमले में तैनात है।
लेफ्ट टर्न के लिए दी कीमती जमीनें
2015 से अब तक 150 लेफ्ट टर्न चौड़े किए गए हैं। सभी के लिए जनता ने अपनी बेशकीमती जमीन दी है। 11.5 किमी के बीआरटीएस के लिए ही 300 लोगों ने अपनी जमीनें दी हैं।
- 2200 जवानों के बल की जरूरत
- 850 का बल स्वीकृत
- 380 का बल यातायात विभाग का तैनात
- 30 लाख वाहन हैं रजिस्टर्ड शहर में
चौराहे पर ट्रैफिक बर्बाद, लेकिन पुलिस की दिलचस्पी सिर्फ चालान बनाने में
500 ट्रैफिक मित्र
शहर की विभिन्न संस्थाओं और संगठन के 500 ट्रैफिक मित्र भी नि:शुल्क सेवाएं दे रहे हैं। जरूरत के अनुसार उनकी ड्यूटी लगाई जाती है।
2.5 साल में बांटे 2000 हेलमेट
शहर की संस्थाओं ने यातायात पुलिस के साथ 2.5 साल में 2 हजार से ज्यादा हेलमेट फ्री बांटे हैं।
20 साल से नहीं हुई थाना पुलिस और यातायात विभाग की बैठक, राडार है फिर भी वाहन बेकाबू
सीसीटीवी कैमरों से नजर रखने के लिए बड़ा कंट्रोल रूम तो बनाया गया है, लेकिन इस्तेमाल अधिकांश समय चालान बनाने के लिए किया जा रहा है। थाना पुलिस और यातायातकर्मियों में तालमेल भी नहीं है। 20 साल से एक भी बार थाना पुलिस और यातायात विभाग की बैठक नहीं हुई है। ब्रीथ एनेलाइजर और स्पीड राडार भी अब कम उपयोग हो रहे हैं। यातायात पुलिस के पास शहर की सड़कों पर बेलगाम दौड़ती गाड़ियों की स्पीड मापने के लाखों रुपए के एक दर्जन से ज्यादा यंत्र (स्पीड राडार) हैं, लेकिन सूबेदारों की टीम महीने में दो या तीन बार इनका इस्तेमाल करती है। इनका लगातार इस्तेमाल करने से हादसों पर कुछ नियंत्रण संभव है।
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