- छैनी-हथौड़ी से खोल रहे थे खाेपड़ी पर फालूदा बन गया
इंदौर सहित प्रदेश के अधिकांश शहरों में आज भी पोस्टमाॅर्टम अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही छैनी-हथोड़े की जुगाड़ से किए जा रहे हैं। इस तरह से किए जाने वाले पीएम में कई अहम तथ्य खराब होने की आशंका रहती है। वहीं डॉक्टर्स और पीएम टीम के लिए यह खतरनाक भी है क्योंकि इस दौरान इन्फेक्शन का खतरा बहुत रहता है। विशेषज्ञ बोले- छैनी-हथौड़ी से खोपड़ी कई बार सही तरकी से नहीं खुलती। कई गंभीर मामलों में खोपड़ी की जांच करना पड़ती है, लेकिन छैनी से उसमें फ्रेक्चर तक आ जाते हैं।
भोपाल स्थित अखिल भारतीय अयुविर्ज्ञान संस्थान (एम्स) ने पोस्टमॉर्टम के दौरान सिर खोलने के लिए छैनी-हथौड़ों का उपयोग बंद कर दिया है। वहां इलेक्ट्रिक शॉ का इस्तेमाल 2017 से हो रहा है। जिला अस्पताल के फाॅरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. भरत वाजपेयी कहते हैं कि कई बार सिर की हड्डी को काटते वक्त उसमें फ्रेक्चर हो जाता है। कई केस ऐसे भी हुए हैं, जिसमें सिर की हड्डी खोलते वक्त वह फालूदा बन गई। यानी छैनी-हथौड़ी के वार से चकनाचूर हो गई। ऐसे मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में काफी दिक्कते आती हैं। उन्होंने कहा, दो बार मेरे सामने टिटनेस से पीड़ित व्यक्ति के शव आए, लेकिन हमने नियमानुसार पीएम नहीं किया। क्योेंकि ऐसे केस में संक्रमण कई गुना खतरनाक स्तर पर फैलता है।
बड़ा सवाल- आधुनिक मशीन उपलब्ध फिर क्यों अहम तथ्य किए जा रहे खराब, संक्रमण का खतरा भी कई गुना अधिक
लगातार पीएम करके हाथ दुख आते हैं
हम सालों से जिला अस्पताल में पोस्टमॉर्टम कर रहे हैं। छैनी हथौड़ी से खोपड़ी खोलने के लिए दो आदमी की जरूरत रहती है। जब शव ज्यादा हो जाते हैं तो इसका प्रयोग करने से हाथ दुखने लगते हैं।
-कमल सालवे और रणजीत सिंह (पोस्टमाॅर्टम भवन के कर्मचारी)
फोड़े-फुंसिया और छाले होना आम बात
हमें हमेशा एलर्जी की समस्या रहती है। कई बार सर्दी-खांसी बहुत बढ़ जाती है। फोड़े-फुंसिया और छाले जैसे चर्म रोग होना आम बात हो गई है। कई बार पता ही नहीं चलता है कि जिसका शव आया है वह किस बीमारी से पीड़ित था।
- विजय कुमार, पोस्टमॉर्टमकर्मी, एमवायएच
संक्रमण से बचना जरूरी
हम 2017 से ऑक्सीलेटिंग इलेक्ट्रिक शॉ विथ सेक्शन (इलेक्ट्रीक मशीन) का उपयोग कर रहे हैं। मशीन हल्की और उपयोग में आसान है। मैं अकेले ही खोपड़ी खोल लेती हूं। मैं इससे 1200 से ज्यादा पीएम कर चुकी हूं। मशीन से कटिंग में हड्डी का पावडर भी नहीं उड़ता है। ऐसे में संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
-डॉ. अरनित अरोरा, हेड, फारेंसिक डिपार्टमेंट, एम्स, भोपाल
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