पंचमुखी हनुमान नाम की लोकप्रिय छवि में हनुमान के पांच मुख और पांच जोड़ी हाथ हैं। इस छवि को देखकर हमारे मन में श्रीकृष्ण का विश्वरूप आता है, जिसका वर्णन भगवद्गीता में किया गया है। विश्वरूप में अनगिनत रूप, आंखें, चेहरें, मुख और भुजाएं हैं। वह असीम ब्रह्माण्ड की तरह अनादि और अनंत है। अर्जुन विश्वरूप के विशाल दृश्य को सहन नहीं कर पाया। डर के मारे उसने कृष्ण से चतुर्भुज विष्णु का रूप फिर से धारण करने का अनुरोध किया, जिसका दृश्य वह सहन कर सकता था। लेकिन पंचमुखी हनुमान विश्वरूप का केवल अति छोटा रूप है। इस रूप में हनुमान राम के विश्वसनीय सेवक से स्वतंत्र अपने आप में पूजनीय देवता में बदल जाते हैं। इस रूप में वानर के सिर के अतिरिक्त शेर, बाज, जंगली शुकर और अश्व के सिर भी हैं। अश्व विष्णु के अवतार और ज्ञान के देवता ‘हयग्रीव’ का प्रतीक है। शुकर विष्णु के वराह अवतार का प्रतीक है, बाज ऊंचा उड़ने वाले गरुड़ का प्रतीक है, जबकि शेर विष्णु के शक्तिशाली नरसिंह अवतार का प्रतीक है। अपने पांच हाथों में हनुमान पांच हथियार धारण करते हैं। पंचमुखी हनुमान की मूर्ति को बहुधा मंदिरों में दक्षिण की ओर मुड़कर रखा जाता है। इसलिए इस रूप को दक्षिणमुखी हनुमान भी कहते हैं। दक्षिण दिशा मृत्यु, यमदेव, भूत तथा पिशाचों के साथ-साथ नकारात्मक और द्वेषपूर्ण शक्तियों से जुड़ी है। हनुमान के इस रूप का उपयोग विशेषतः मनोगत प्रथाओं में अपने आप को नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है। यह छवि वाल्मीकि रामायण के रचे जाने के बहुत बाद यानी आज से लगभग 1000 वर्ष पहले बहुत लोकप्रिय हुई। इस छवि का तांत्रिक काल और योग संबंधी प्रथाओं के उद्गम से भी गहरा संबंध है। लोग मानते थे कि ब्रह्मचारी होने के कारण हनुमान के पास सिद्धि नामक विशेष मनोगत शक्तियां थीं, जिनसे वे इच्छानुसार अपना आकार बदल सकते थे। इतना ही नहीं, वे हवा में उड़ सकते थे, पानी पर तैर सकते थे और अपना आकार बदलकर मधुमक्खी जितने छोटे या पहाड़ जितने विशालकाय बन सकते थे। इन शक्तियों के कारण हनुमान तांत्रिकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। मध्य युग में रामायण का अद्भुत रामायण नामक पुनःकथन रचा गया। तांत्रिक अंदाज की इस रामायण में एक स्तर पर सीता ने और दूसरे स्तर पर हनुमान ने राम को पीछे छोड़ दिया। सीता ने महाकाली का रूप लेकर रावण के बड़े भाई को पराजित किया। इस तरह उन्होंने राम के समक्ष साबित किया कि वे स्वयं अपनी देखभाल भली-भांति कर सकती थीं। रावण को हराकर सीता ने ही राम को अपनी राजसी प्रतिष्ठा स्थापित करने की शक्ति दी। एक और कहानी में महिरावण ने राम का अपहरण कर लिया। तब हनुमान ने पाताल लोक जाकर तरह-तरह के दानवों से लड़ाई की और अंत में महिरावण, उसकी पत्नी और उसके बेटे अहिरावण को पराजित किया। यहां हनुमान को काली और उनसे संबंधित मनोगत व तांत्रिक परंपराओं से निकटता से जोड़ा जाता है। पाताली हनुमान नामक यह रूप ग्रामीण भारत में बहुत लोकप्रिय है। पांच भुजाओं और पांच मुखों वाली हनुमान की छवि, जिसमें उनकी पूंछ उठी हुई है और वे आक्रामक मुद्रा में महिरावण व अहिरावण राक्षसों को कुचल रहे हैं, स्पष्ट रूप से तांत्रिक चिह्न हैं। कई लोग कठिन समय में अपने आप को सुरक्षित रखने और शक्ति प्रदान करने के लिए इस छवि को स्वतंत्र रूप से अपने साथ रखते हैं। यह छवि हमें याद दिलाती है कि असंभव कुछ भी नहीं है। लोकप्रिय मान्यता यह है कि हनुमान एक वानर हैं। लेकिन राम से मिलकर उनकी सेवा करने पर उन्होंने दक्षिण की ओर और पाताल लोक जाकर समस्याएं हल कीं, जिससे वे अपने भीतर की दिव्य क्षमता से अवगत हुए। इस क्षमता से वे अपने वानर शरीर की सीमाओं को पार कर पाए। उन्होंने अपने भीतर अश्व, शेर, बाज और जंगली शुकर की खोज की। हनुमान से हमें सीख मिलती है कि श्रद्धा और धैर्य की मदद से हम जीवविज्ञान की हदों से ऊपर उठ सकते हैं।
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