केंद्र की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना के तहत एमपी में पांच साल में 3.55 करोड़ आयुष्मान कार्ड बने, लेकिन इलाज सिर्फ 5 लाख को ही मिला। आकंड़ों को देखें तो एमपी, यूपी सहित कई राज्य इलाज प्रदान करने में पीछे रहे हैं।
इन राज्यों में 5 साल में इस योजना के तहत अस्पताल में इलाज का औसत महज 7% रहा है। एमपी में इलाज का खर्च 5 सालों में लगभग 4000 करोड़ रहा। दूसरी ओर साउथ के राज्यों सहित कुछ राज्यों में यह आंकड़ा 20 से 25% ही रहा है। सालाना आधार पर यह दर और भी कम है।
विशेषज्ञों ने जताई फर्जीवाड़े की आशंका, कहा- जांच की जरूरत
जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल को-ऑर्डिनेटर अमूल्य निधि का कहना है कि एमपी, यूपी जैसे राज्यों में योजना का क्रियान्वयन निश्चित ही अच्छा नहीं रहा। योजना आने पर हेल्थ केयर में पहली बार इलाज के रेट्स पर नियंत्रण हुआ। इतने कार्ड्स पर इलाज नहीं हुए तो क्या फर्जी कार्ड बने थे, ये जांच का विषय है। आंकड़ों को देखें तो एमपी की आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है। आयुष्मान भारत (एमपी) के जनरल मैनेजर ओपी तिवारी ने कहा कि योजना के तहत पात्र परिवार 1.08 करोड़ हैं जबकि कुल पात्र हितग्राहियों की संख्या 4.7 करोड़ हैं।
मेडिकल आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. विवेक पांडेय ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में कार्ड देखकर लगता है फर्जी कार्ड की संभावना जांचने के लिए बड़ी जांच की आवश्यकता है। वैसे भी एमपी में आयुष्मान घोटाला सामने आ चुका है। रिटायर्ड हेल्थ डायरेक्टर केके ठस्सू के मुताबिक एमपी में बड़े शहरों के अलावा इमपेनल्ड हॉस्पिटल्स का नेटवर्क छोटी जगहों में नगण्य रहा है। यह वजह हो सकती है कि गंभीर न होने पर लोग स्थानीय स्तर पर इलाज करा लें। साउथ में हेल्थ नेटवर्क अच्छा रहा है, लिटरेसी, अवेयरनेस अधिक है। कई अस्पताल संचालकों और स्वास्थ्य अधिकारियों ने दबी जुबान में स्वीकारा कि योजना में इलाज के रेट फिक्स होने से निजी अस्पतालों को दिक्कत रही है। पेमेंट अटकने का भी इशू रहा है। एसो. ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के एमपी चैप्टर के अध्यक्ष डॉ. अनूप हजेला ने स्वीकार किया कि पेमेंट के इशु रहे हैं, पर अब सुलझ चुके हैं।
0 टिप्पणियाँ