इंदौर में तीन दिन चली गेस्ट्रो इंटेस्टाइनल एंडोस्कोपी ऑफ इंडिया की नेशनल कांफ्रेंस (एंडोकॉन-2023) में इस कैप्सूल एंडोस्कोपी पर देश-विदेश से आए एक्सपर्ट्स ने मंथन किया। यहां पेट की बीमारियों का जल्दी पता लगाने के लिए कैप्सूल एंडोस्कोपी की जमकर चर्चा रही। यह नई तकनीक है जो इजराइल ने इजाद की है। सादी भाषा में कहें तो कैमरा लगा एक कैप्सूल। जो शरीर के अंदर जाता है और मल द्वार के जरिए प्राकृतिक तरीके से बाहर हो जाता है। इस बीच वह 60 हजार तस्वीरें खींचता है जिसे एक्सपर्ट्स देखते हैं और बीमारी का पता बारीकी से लगा सकते हैं। ने इसे लेकर ऑर्गेनाइजिंग कमेटी के चेयरमेन डॉ. सुनील जैन (गेस्ट्रो सर्जन) से इस कैप्सूल एंडोस्कोपी की प्रोसेस जानी।
ऐसे होती है कैप्सूल एंडोस्कोपी की प्रोसेस
डॉ. जैन के मुताबिक कैप्सूल एंडोस्कोपी आम एंडोस्कोपी से अलग है। आम एंडोस्कोपी में खाने की नली, पेट और छोटी आंत का पहला हिस्सा दिखाई देता है या मल के रास्ते उसे किया जाता है तब बड़ी आंत देख पाते हैं। इसमें बीच में जो छोटी आंत होती है उसे नॉर्मल एंडोस्कोपी से नहीं देखा जा सकता। ऐसे में अगर पेशेंट का ब्लड ज्यादा लॉस हो रहा हो या ऐसा लगता है कि छोटी आंत में ज्यादा बीमारी हो सकती है तो उसे यह कैमरा कैप्सूल दिया जाता है। इसके साथ ही बैटरी भी लगी होती है। यह लाइट भी देती है और तुरंत फोटो भी बाहर भेजती है। इसके लिए मरीज को एक बेल्ट पहनाया जाता है जिसमें वह सारी इमेजेस रिकॉर्ड करता है।
कम्प्यूटर पर देखी जाती हैं सारी इमेजेस
फिर जब पेशेंट का पेट साफ होता है तो कैमरा कैप्सूल लेट्रीन के रास्ते बाहर आ जाता है। इसके पहले कैमरा छोटी आंत की, बड़ी आंत की और पेट की भी सारी इमेजेस रिकॉर्ड करके भेज देता है जिसे कम्प्यूटर पर डॉउनलोड करके बारीक से बारीक जांच कर सकते हैं। इसमें अगर छोटी आंत में गठान हो, खून का रिसाव हो, छोटे खून के गुच्छे हो, ऐसी बीमारियों का पता करने में काफी आसानी होती है।
ऐसे किया जाता है डायग्नोस
पेशेंट को पहले कैप्सूल की साइज का सादा कैप्सूल दिया जाता है। यह कैप्सूल पासऑउट हो जाता है तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि आंत में किसी प्रकार की रुकावट नहीं है। इसके बाद पेशेंट को एंडोस्कोपिक वाली कैप्सूल देते हैं। यह कैप्सूल फोटो खिंचता रहता है और आंतों के अंदर उसकी चाल से आगे बढ़ता रहता है व फिर शौच में निकल जाता है। इस दौरान 60 हजार से ज्यादा इमेजेस वह रिकॉर्ड कर लेता है।
पेट में 8 से 10 घंटे लगातार इमेजेस करता है रिकॉर्ड
इस कैमरा कैप्सूल के जरिए छोटी आंत की जांच में 8 से 12 घंटे लगते हैं। यानी पेशेंट को कैप्सूल खिलाने के बाद मरीज सो जाता है जबकि कैमरा कैप्सूल अपनी इमेजेस रिकॉर्ड करने का काम करता रहता है। बस मरीज को इतनी हिदायत दी जाती है कि वह इस बात का ध्यान रखें कि जब भी वह टॉयलेट जाए तो देख ले कैप्सूूल पास ऑउट हुआ है या नहीं।
विदेश से मंगाए जाते हैं कैमरा कैप्सूल्स
डॉ. जैन ने बताया कि भारत में करीब एक दशक से यह एडवांस टेक्नोलॉजी है लेकिन बहुत कम लोग इसके जरिए जांच करवाते हैं। दरअसल इसका इन्वेंशन इजराइल ने सबसे पहले किया था। इसके बाद अन्य देशों ने किया। भारत में यह टेक्नोलॉजी नहीं बनी है। भारत द्वारा दूसरे देशों से कैमरा कैप्सूल्स मंगाए जाते हैं।
30 से 35 हजार रु में कैप्सूल एंडोस्कोपीबि
पहले कैप्सूल एंडोस्कोपी काफी महंगी होती थी। अब 30 से 35 हजार रु. में होती है। कैमरा कैप्सूल द्वारा 60 हजार से ज्यादा इमेजेस रिकॉर्ड होने से उसके पेट में कहां और किस तरह की तकलीफ या बीमारी है, यह आसानी से डायग्नोस हो जाती है। अभी छोटी आंत को देखने का सबसे आसान तरीका यही माना गया है क्योंकि छोटी आंत की बाकी एंडोस्कोपी में काफी टाइम लगता है और मरीज को काफी परेशानी होती है। कई बार फिर एनेस्थीसिया से प्रोसेस करनी पड़ती है। कैप्सूल एंडोस्कोपी के जरिए जांच कराने के दौरन मरीज को कोई तकलीफ नहीं होती।
0 टिप्पणियाँ