श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और श्रीकृष्ण पुष्टि पुरुषोत्तम। श्रीराम मर्यादा है, तो लक्ष्मण विवेक, भरत वैराग्य और शत्रुघ्न सुविचार हैं। वैराग्य और सुविचार जब चले जाते हैं तो कुमति कैकई का वास हो जाता है और तब भगवान श्रीराम अयोध्या से वन की ओर चले जाते हैं।
पीथमपुर बायपास रोड स्थित मां बगलामुखी सिद्धपीठ शंकराचार्य मठ पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन शुक्रवार को मठ के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंद महाराज ने यह बात कही। 2 जुलाई तक चलने वाले श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में व्यासपीठ और गुरु पूजन राजेश राठौर, पवन अग्रवाल और सागर पालीवाल ने किया।
राम कथा सुनने से बुद्धि होती है एकाग्र
महाराजश्री ने कहा भगवान श्रीराम का एक पत्नी व्रत, पितृ प्रेम, मातृ प्रेम, भातृ प्रेम और सरलता अनुकरणीय है। इनके आदर्शों को जीवन में उतारने वाला सहज ही जीवन संग्राम से जूझ लेता है और भगवान श्रीकृष्ण के ब्रह्म रास को प्राप्त कर लेता है। इस ब्रह्मरास को प्राप्त करके व्यक्ति का संपूर्ण जीवन सुधर जाता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव से पूछा कि भगवान की कथा में एकाकार कैसे हों? तब शुकदेव ने उन्हें भगवान श्रीकृष्ण से पहले भगवान श्रीराम की कथा सुनाई, क्योंकि भगवान श्रीराम सूर्यवंश के प्रवर्तक हैं और सूर्य बुद्धि के देवता हैं, वहीं भगवान श्रीकृष्ण चंद्रवंश के प्रवर्तक और चंद्र, मन के देवता हैं। इसीलिए जब तक श्रीराम के अवतार की कथा नहीं सुनो, तब तक बुद्धि एकाग्र नहीं हो पाता है। बुद्धि एकाग्र नहीं होती तब तक मन नहीं लगता और जब तक मन नहीं लगता तब तक श्रीकृष्ण नहीं मिलते। श्रीराम का चरित्र जीवन में उतारने से ही श्रीराम की कथा सार्थक होती है।
0 टिप्पणियाँ