सावन महीने के दूसरे सोमवार को उज्जैन में बरसते पानी के बीच राजाधिराज भगवान महाकाल की सवारी निकली। उज्जैन के राजा के रूप में बाबा महाकाल प्रजा के हाल जानने निकले। महाकालेश्वर मंदिर में सबसे पहले बाबा महाकाल की आरती और पूजन किया गया। पुलिस की सशस्त्र टुकड़ी ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
दूसरी सवारी में बाबा महाकाल चन्द्रमौलेश्वर स्वरूप में भक्तों को दर्शन देने निकले। सवारी में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। जगह-जगह सवारी का फूल बरसा कर स्वागत किया गया। सड़कों पर रंगोली भी बनाई गई थी।
सवारी के दौरान तेज बारिश भी शुरू हो गई। बारिश के बीच भी भक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ था। सवारी में भजन मंडली, शिव के स्वरूप की झांकी आगे चल रही थी। इसके बाद सशस्त्र बल की टुकड़ी समेत मंदिर के पुजारी बाबा की पालकी के साथ चल रहे थे।
बाबा महाकाल की सवारी रामघाट पहुंची। यहां मंदिर के पंडित आशीष पुजारी ने क्षिप्रा के जल से बाबा का अभिषेक पूजन किया। इसके बाद शाम 5:30 बजे सवारी रवाना हो गई। पूजन के दौरान दत्त अखाड़ा की ओर से दूसरे घाट पर भी पूजन किया गया। दोनों ही घाटों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। शाम करीब 7 बजे सवारी गोपाल मंदिर पहुंची। यहां पूजन के बाद सवारी वापस महाकाल मंदिर के लिए रवाना हुई।
सावन सोमवार और सोमवती अमावस्या एक ही दिन होने का संयोग
आज सावन का दूसरा सोमवार है। साथ ही सोमवती अमावस्या भी है। 57 साल बाद ऐसा संयोग बना है, जब श्रावण माह के सोमवार के दिन सोमवती हरियाली अमावस्या पड़ी है। इससे पहले यह योग 1966 में बना था। महाकालेश्वर मंदिर के पट रात 2:30 बजे खोल दिए गए। सुबह 10 बजे तक 1 लाख से ज्यादा श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। शाम तक 4 लाख श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है।
श्रद्धालु शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर महाकाल के दर्शन के लिए पहुंचे। बड़ी संख्या में श्रद्धालु तड़के होने वाली भस्म आरती में शामिल होने पहुंचे। भीड़ अधिक होने की वजह से प्रोटोकॉल दर्शन व्यवस्था को पूरी तरह से बंद किया गया है। नंदी हॉल को भी बंद कर दिया है।
उधर, महेश्वर में बाबा ओंकार का फूलों और हल्दी से भव्य श्रृंगार किया गया। जबलपुर में संस्कार कांवड़ यात्रा में पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह शामिल हुए। उन्होंने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि वे इस कांवड़ यात्रा में शामिल हुए। भोले बाबा की कृपा सभी पर बनी रहे। बोल कांवड़िया, बोल बम - बम...
भांग, चंदन, सूखे मेवों से दिव्य श्रृंगार
सावन के दूसरे सोमवार को अल सुबह जल से बाबा महाकाल काे स्नान कराया। दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, फलों के रस से बने पंचामृत से पूजन किया। भांग, चंदन, सूखे मेवों से दिव्य श्रृंगार किया गया। इसके बाद भस्म अर्पित की गई। रजत का त्रिपुंड, त्रिशूल और चंद्र अर्पित कर शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुंडमाल और रुद्राक्ष की माला के साथ फूलों की माला भी धारण कराई। फल और मिष्ठान का भोग लगाया। महा निर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल को भस्म अर्पित की गई। मान्यता है कि भस्म अर्पित करने के बाद भगवान निराकार से साकार रूप में दर्शन देते हैं।
57 वर्ष बाद विशेष संयोग
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार 17 जुलाई सोमवार को विशेष संयोग में सोमवती हरियाली अमावस्या का पुण्य काल आ रहा है। इसी दिन महाकाल की सवारी भी है। इससे पहले यह स्थिति 1966 में बनी थी। तब भी सावन महीने में अधिक मास के दौरान सोमवार को अमावस्या का योग बना था। पौराणिक मान्यताओं व शास्त्रीय गणना के अनुसार इस योग-संयोग में सोमवती हरियाली अमावस्या का होना साधना, उपासना, दान और ग्रहों की अनुकूलता के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
सोम तीर्थ व शिप्रा में स्नान के लिए पहुंचे भक्त
स्कंद पुराण के अवंतिखंड में सोमेश्वर तीर्थ की पारंपरिक मान्यता है। सोमवार के दिन अमावस्या आने पर यहां सोमेश्वर का पूजन किया जाता है। स्नान की परंपरा और दान की मान्यता बताई गई है। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में भी सोमवती अमावस्या पर प्रदेश भर से श्रद्धालु अल सुबह से ही स्नान के लिए पहुंचने लगे थे।
एक लोटा जल अर्पित कर मुराद पूरी होगी
पंडित महेश पुजारी ने बताया कि सावन महीने में महाकाल भगवान को एक लोटा जल और बिल्वपत्र चढ़ाने से मन की मुराद पूरी होती है। सावन महीने में भगवान महाकाल की आराधना जप और तप का महीना होता है। महाकालेश्वर मंदिर में पांच आरती होती हैं, जिसमें भस्म आरती सबसे खास होती है। दक्षिण मुखी होने के चलते महाकाल भगवान का अलग महत्व है। सावन महीने के शेष सात सावन के सोमवार और भादौ महीने के दो सोमवार बाबा महाकाल राजसी ठाट बाठ से राजा स्वरूप में भक्तों का हाल जानने निकलेंगे।
मंदिर के लिए यहां से प्रवेश करें भक्त
इस बार सावन महीने में महाकाल मंदिर में भक्तों को सुबह करीब 4 बजे से प्रवेश मिलने लगेगा। चलित भस्म आरती में आने वाले श्रद्धालुओं को कार्तिकेय मंडपम से दर्शन करने के मौका मिलेगा। सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक लगातार दर्शनों का सिलसिला जारी रहेगा।
दूसरी सवारी 17 जुलाई, शाही सवारी 11 सितंबर को
- दूसरी: 17 जुलाई
- तीसरी: 24 जुलाई
- चौथी: 31 जुलाई
- पांचवीं: 7 अगस्त
- छठी: 14 अगस्त
- सातवीं: 21 अगस्त
- आठवीं: 28 अगस्त
- नौवीं: 4 सितंबर
- 10वीं शाही सवारी: 11 सितंबर
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