जैन दर्शन में भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर तक 24 तीर्थंकर हुए हैं। सभी हमारे लिए वंदनीय और पूजनीय हैं। सभी तीर्थंकरों ने जीवों के कल्याण के लिए एक समान उपदेश दिया है। वर्तमान में पंच परमेष्ठी के रूप में अरिहंत, सिद्ध परमेष्ठी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आचार्य, उपाध्याय और मुनि परमेष्ठी उपलब्ध हैं। वे किसी भी संघ या पंथ के हों सभी समान रूप से पूज्यनीय व वंदनीय हैं। जगत कल्याणी जिनेंद्र की वाणी सुनाते हैं। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि जिस प्रकार आप 24 तीर्थंकरों को मानते हैं, उसी प्रकार वर्तमान में संतवाद, पंथवाद और संघवाद छोड़ो और समान रूप से सभी संघों के आचार्य, उपाध्याय और साधुओं से नाता जोड़ो और उनकी विनयपूर्वक भक्ति करो।
छत्रपति नगर में सिद्धचक्र महामंडल विधान पूजन के वक्त दिए आशीर्वचन
आचार्य विहर्ष सागर महाराज ने दिगंबर जैन आदिनाथ जिनालय छत्रपति नगर में चल रहे सिद्धचक्र महामंडल विधान पूजन में बैठे भक्तों को शुक्रवार को आशीर्वचन देते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा सिद्धचक्र मंडल विधान पूजन से जो लोग विनयपूर्वक सिद्ध परमेष्ठी की आराधना कर रहे हैं, वह सब पुण्यशाली और भविष्य के भगवान हैं। आचार्यश्री ने कहा कि जैन एक ऐसा दर्शन है, जिस पर हमें गर्व होना चाहिए। जैन दर्शन में विनियाचार के साथ जो जीव शास्त्रों में वर्णित 16 भावनाएं होती हैं, उसका कल्याण होता है, कर्मों की निर्जरा होती है और उसका तीर्थंकर बनने का मार्ग प्रशस्त होता है।
कालानी नगर से विहार करते हुए छत्रपति नगर पहुंचे आचार्यश्री
राजेश जैन दद्दू ने बताया आचार्यश्री शुक्रवार सुबह कालानी नगर से विहार करते हुए छत्रपति नगर मंदिर पहुंचे। जहां ट्रस्ट के पदाधिकारी कैलाश जैन, डॉ. जैनेंद्र जैन, राजेंद्र जैन, प्रकाश दलाल, रमेशचंद जैन, नीलेश जैन, राजेश जैन, दिलीप जैन, राजेंद्र सोनी एवं महिला मंडल की सदस्यों ने पाद-प्रक्षालन किया। इस दौरान श्रीफल भेंटकर आचार्य संघ की अगवानी की गई। शनिवार को भी आचार्यश्री के प्रवचन छत्रपति नगर में होंगे।
0 टिप्पणियाँ