लैंड डेवलपर्स के केस में ज़मीन मालिक और बिल्डर के बीच हुए जॉइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट (जेडीए) होता है, उसमें बिल्डर को संपत्ति में कोई राइट नहीं मिलता है। जेडीए में बिल्डर सिर्फ़ वर्क्स कॉंट्रैक्ट सर्विस प्रोवाइड करता है। इसके अतिरिक्त बिल्डर का संपत्ति में कोई राइट नहीं रहता। अतः जेडीए एक्सिक्यूशन के समय किसी प्रकार की जीएसटी लायबिलिटी नहीं आ सकती है।
टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन एवं इंदौर सीए शाखा द्वारा ‘जीएसटी लिटीगेशंस एवं नोटिसेस’ विषय पर बुधवार को आयोजित सेमिनार में मुंबई के प्रसिद्ध सीनियर एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट) सीए भरत रायचंदानी ने यह बात कही। टीपीए प्रेसिडेंट सीए शैलेंद्र सिंह सोलंकी एवं इंदौर सीए शाखा के चेयरमैन सीए मौसम राठी ने स्वागत उद्बोधन दिया।
इनपुट टैक्स क्रेडिट डिनायल के केस बढ़े
भरत रायचंदानी ने कहा कि जीएसटी डिपार्टमेंट द्वारा इनपुट टैक्स क्रेडिट डिनायल के केस अभी बहुत हो रहे हैं, जबकि एक्ट में लिखा है कि एक्सेप्शनल केस में ही आईटीसी डिनाय की जा सकती है। सिर्फ़ बिना गुड्स सुप्लाय के की गई आईटीसी ही रिवर्स की जा सकती है। यहां तक कि माल का फिजिकल मूवमेंट हुए बग़ैर भी प्रॉपर सप्लाई मानी जा सकती है।
फेक जीएसटी रजिस्ट्रेशन पर भी चर्चा
उन्होंने कहा कि फेक जीएसटी रजिस्ट्रेशन की मुहिम चलाई का रही है, जबकि जीएसटी क़ानून में फेक जीएसटी रजिस्ट्रेशन नामक कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि व्यक्ति मौजूद है, आइडेंटिफ़ायबल है तो उसका रजिस्ट्रेशन फेक हो ही नहीं सकता। जीएसटी एक्ट में सिर्फ़ इंपरसुएशन याने फेक नाम से या पहचान छुपाकर लिया गया रजिस्ट्रेशन ही कैंसल किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि यदि करदाता विभाग द्वारा निकाली गई डिमांड से सहमत नहीं है तथा उसे लगता है कि मानसिक शांति के लिए टैक्स जमा कर अपील फाइल करना उचित होगा, ऐसी दशा में जो भी टैक्स जमा करें वो अंडर प्रोटेस्ट ही भरे।
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