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बाबा अमरनाथ के दर्शन शुरू:अमरनाथ गुफा में शिव जी ने देवी पार्वती को बताया था अमरता का रहस्य, यहां प्राकृतिक रूप से बनता है शिवलिंग

शनिवार, 1 जुलाई से भक्त बाबा अमरनाथ के दर्शन कर पाएंगे। इस साल सावन महीने में अधिक मास रहेगा, इस कारण करीब दो महीनों तक अमरनाथ गुफा भक्तों के लिए खुली रहेगी। गुफा में बर्फीले पानी की बूंदें लगातार टपकती रहती हैं, इन्हीं बूंदों से लगभग यहां बर्फ का शिवलिंग बन जाता है। ये शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक रूप से ही बनता है। जानिए बाबा अमरनाथ से जुड़ी कथा और खास बातें...

बाबा अमरनाथ की गुफा का पौराणिक महत्व काफी अधिक है। माना जाता है कि इस गुफा में शिव जी ने देवी पार्वती को अमरता का रहस्य बताया था। अमरनाथ शिवलिंग की ऊंचाई घटती-बढ़ती रहती है। बाबा अमरनाथ की गुफा और श्रीनगर के बीच की दूरी लगभग 145 किलोमीटर है। ये गुफा समुद्र तल से लगभग 13 हजार फीट ऊंचाई पर है। गुफा में प्राकृतिक रूप से शिवलिंग बनता है। शिवलिंग के साथ ही यहां गणेश जी, पार्वती जी और भैरव महाराज के हिमखंड भी बनते हैं।

कैसे पहुंचे अमरनाथ

अमरनाथ यात्रा के लिए श्रीनगर पहुंचना होता है। श्रीनगर के लिए देशभर से आवागमन के कई साधन आसानी से मिल जाते हैं। श्रीनगर से पहलगाम या बालटाल पहुंचना होता है। बालटाल से अमरनाथ करीब 14 किमी दूर है। जबकि पहलगाम से इस गुफा की दूरी करीब 36 किमी है। बालटाल वाले रास्ते में चढ़ाई अधिक है, लेकिन पहलगाम के रास्ता लंबा, लेकिन आसान है।

शिव जी ने देवी पार्वती को बताया था अमरता का रहस्य

अमरनाथ गुफा से जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक, पुराने समय में देवी पार्वती शिव जी से अमरता का रहस्य जानना चाहती थीं। भगवान शिव देवी पार्वती को अमरता रहस्य बताने ले जा रहे थे। उस समय भगवान ने रास्ते में अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ दिया था। माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतार दिया। अन्य पिस्सुओं को पिस्सूटॉप वाले क्षेत्र में छोड़ा और गले के शेषनाग को शेषनाग नाम की जगह पर छोड़ दिया था। ये सभी जगहें आज भी अमरनाथ यात्रा के दौरान दिखाई देती हैं।

शिव जी ने अमरनाथ गुफा में ही देवी को अमरता का रहस्य बताया था। माना जाता है कि ये रहस्य देवी पार्वती के अलावा एक शुक यानी कबूतर ने भी सुन लिया था। बाद में यही शुक (कबूतर) शुकदेव ऋषि के रूप में प्रसिद्ध हुए थे।

सबसे पहले एक चरवाहे ने देखी थी ये गुफा

गुफा का इतिहास तो बहुत पुराना है, लेकिन तीन-चार सौ साल पहले अमरनाथ गुफा की खोज एक चरवाहे ने की थी। इस संबंध में मान्यता है कि इस क्षेत्र में एक चरवाहे को एक संत ने कोयले से भरी हुई पोटली दी थी। जब वह चरवाहा कोयले की पोटली लेकर अपने घर पहुंचा तो उसने देखा कि पोटली मे कोयले की जगह सोना था। ये चमत्कार देखकर चरवाहा फिर से संत की खोज में इस क्षेत्र में पहुंच गया। संत को खोजते-खोजते चरवाहा अमरनाथ गुफा में पहुंच गया। गुफा से लौटकर चरवाहे ने लोगों को पूरी घटना सुनाई। लोगों ने अमरनाथ गुफा को देव स्थान मानकर यहां पूजा-पाठ शुरू की थी। तभी से बाबा अमरनाथ की गुफा में दर्शन और पूजन करने की परंपरा प्रचलित है।

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