आषाढ़ महीने में भगवान विष्णु की पूजा के साथ पेड़-पौधे लगाने का विधान ग्रंथों में बताया है। इस महीने लगाए पेड़-पौधों से दोष दूर होने की मान्यता ग्रंथों में बताई गई है। पुराणों और स्मृति ग्रंथों में वृक्षारोपण करने का बहुत पुण्य बताया है।
आषाढ़ मास में पीपल, बरगद, नीम, आंवला, अशोक, तुलसी, बिल्व पत्र और अन्य पेड़-पौधे लगाने की परंपरा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौरान बारिश का मौसम होता है। जिससे पेड़-पौधे मुरझाते नहीं और जल्दी बड़े होते हैं।
ग्रंथों में भी कहा गया है कि अमावस्या पर लगाए गए पेड़-पौधों से पितर और देवता प्रसन्न होते हैं। साथ ही कभी न खत्म होने वाला पुण्य भी मिलता है। इससे कई तरह के दोष भी खत्म होते हैं।
पुराणों में पेड़-पौधे लगाने का महत्व
1. विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक पेड़-पौधे लगाने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
2. मनु स्मृति में कहा गया है कि पेड़-पौधे लगाने से यज्ञ करने जितना पुण्य फल मिलता है।
3. भविष्य पुराण में कहा गया है कि जिसको संतान नहीं हुई उस दंपती के लिए पेड़ ही संतान के समान होते हैं।
4. पद्म पुराण में लिखा है कि जलाशय यानी नदी, तालाब, कुएं-बावड़ी के पास पीपल का पेड़ लगाने से सैकड़ों यज्ञ करने के के बराबर पुण्य मिलता है।
5. वराह पुराण में कहा है कि जो इंसान एक पीपल, नीम, बरगद, दो अनार, नारंगी, पांच आम के पेड़ और दस फूल वाले पौधे लगाता है वो नर्क में नहीं जाता।
6. मत्स्य पुराण के मुताबिक दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक पेड़ होता है।
7. शिव पुराण का कहना है कि जो वीरान एवं दुर्गम जगहों पर पेड़-पौधे लगाते हैं, ऐसे लोग अपनी पिछली और आने वाली पीढ़ियों को तार देते हैं।
पुरी के ज्योतिषाचार्य और धर्म ग्रंथों के जानकार डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि आषाढ़ महीने में पीपल, बरगद और गूलर के पेड़ लगाने का भी बहुत महत्व है। इन पेड़-पौधों को भगवान विष्णु का ही रुप माना गया है। इनके अलावा तुलसी, दूब, अशोक, आंवला, एरंड, मदार, केला, नीम, कदंब और बेल का पेड़ लगाने से भी भगवान विष्णु-लक्ष्मीजी और अन्य देवी-देवता प्रसन्न होते हैं।
डॉ. मिश्र बताते हैं कि पेड़, पौधौं का संबंध नवग्रहों से होता है। नवग्रह शांति और दोष से बचने के लिए वृक्षारोपण करने का विधान ज्योतिष ग्रंथों में बताया है।
जिसमें सूर्य के लिए मदार, चंद्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खैर और बुध के लिए अपामार्ग यानी चिरचिटा और गुरु के लिए पीपल का पेड़ लगाना चाहिए। वहीं, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दुर्वा और केतु के लिए कुशा लगाने का विधान ग्रंथों में बताया गया है।
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