“सत्यम-शिवम्-सुंदरम”
सत्यम-शिवम्-सुंदरम स्वरूप में विराजमान महादेव दिखावे से कोसों दूर है। उन अनंत, अविनाशी की सरलता की थाह पाना मुश्किल है। वे प्रेम की उत्कृष्ठता को प्रदर्शित करते है। सती के प्रेम में कभी रौद्र रूप धारण करने वाले शिव, अनंत वर्षो तक मौन साधना के द्वारा पार्वती का इंतज़ार करते है और शिव-शक्ति के द्वारा संसार को संपूर्णता प्रदान करते है। विनायक के स्वरूप में भी वे ज्ञान की उत्कृष्ठता को सिद्ध करते है। शिव सदैव सत्य का साक्षात्कार कराते है। सृष्टि के कल्याण और मंगल के लिए शिव ने स्वयं को साक्षात लिङ्ग रूप में स्थापित किया है। शिव का स्मरण आत्मा में आनंद की धारा प्रवाहित करने वाला है। महादेव का ध्यान ही अनेक सुखों का उद्गम स्थल है। शिवशम्भु का नाम और दर्शन ही मनुष्य के अनेक कष्ट को हरने के लिए पर्याप्त है। शिव ईश्वर का सबसे सरल, पवित्र और शक्तिशाली नाम है। सच्चे हृदय से शिव का स्मरण करने से अनेक पाप क्षण भर में नष्ट हो जाते है।
जिस आदि, अनंत, अविनाशी की चारों युग और कालचक्र स्वयं आराधना करते है, उस भक्तवत्सल महायोगी, जो संसार के कण-कण में व्याप्त है ने वसुंधरा पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए स्वयं को ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विराजमान किया है। वह शिव शंकर अनंत काल से ज्योतिर्लिंग रूप में मृत्युलोक में निवास करते है और अनंतकाल तक इसी प्रकार इसी ज्योतिस्वरूप में भक्तों का कल्याण करते रहेंगे। शिव साक्षात आनंद का स्वरूप है। यह ज्योतिर्लिंग ही शिव के परम धाम है। शिव का ज्योतिस्वरूप ही हमारी आस्था का परम मोक्ष धाम है। ज्योतिर्लिंग शिव का वह प्रकाशस्वरूप है जहाँ पर शिव की भक्ति का सूर्य सदैव देदीप्यमान रहता है। महादेव तो भोले भण्डारी आशुतोष है। सम्पूर्ण सृष्टि ही विश्वनाथ शिव के अधीन है। पल में प्रलयंकर का रूप धारण करने वाले शिव रुद्र रूप में सृष्टि में ताण्डव मचा सकते है और वहीं भक्तवत्सल भक्तों के कल्याण के लिए सहर्ष ही विष का प्याला स्वीकार करते है और देवो के देव महादेव की संज्ञा पाते है। वहीं शिव भक्तों के उद्धार के लिए स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रत्यक्ष निवास करते है एवं अपने भक्तों को मुक्ति प्रदान कर उन्हें शिवलोक में समाहित करते है।
शिव स्वरूप मोहमाया के मिथ्या रूप को जानते है, इसलिए सदैव ध्यान की प्रेरणा देते है। जीवन का अंतिम ध्येय शांतचित्त स्वरूप होना है। आशुतोष जो केवल जलधारा से प्रसन्न हो जाए, जो द्रव्य हर किसी के लिए सहजता से उपलब्ध हो जाए वही शिव स्वीकार कर मनोवांछित फल प्रदान करते है। प्रत्येक आडंबर से मुक्त जगतगुरु जीवन के सत्य से साक्षात्कार कराते है। शिव संदेश देते है की हम स्वयं पर ध्यान केन्द्रित करके उन्नति के आयाम को खोज सकते है। स्वयं के आनंद स्वरूप को पहचान सकते है। हमें अपनी ऊर्जा को स्वयं के भीतर ही बढ़ाना है। स्वयं में ही आनंद के क्षण को खोजना है।
शिव तत्व में समाहित अनेक शिक्षाओं को हम अपने जीवन से जोड़ सकते है। जैसे त्रिकालदर्शी शिव त्रिनेत्रधारी है वे दो नेत्रों से बाहरी दृष्टि और तीसरे नेत्र से अंतर्मन में झाँकते है। मनुष्य को भी जीवन मे अपने बाहर और भीतर में अवलोकन करने वाला होना चाहिए। शिव उमापति की अंतर्दृष्टि हमे स्वमूल्यांकन को प्रेरित करती है। उमापति नागेश्वर तो वे देव है जिन्होंने काम को भस्म कर विजय प्राप्त की है। उमाकांत तो जीवन में उपासना को महत्व प्रदान करते है वासना को नहीं। जगपालनकर्ता शिव ने तो जीवन से कामनाओ का भी अंत कर दिया। उन्हें सिर्फ राम आराधना, राम दर्शन,राम कथा श्रवण और अपने आराध्य राम नाम के अनवरत जप की ही मनोकामना रहती है। शिव के आराध्य देव श्रीराम एवं श्रीराम के ईश्वर रामेश्वर है। महादेव पार्वती से कहते है की राम नाम विष्णुसहस्त्रनाम के तुल्य है और में सदैव राम नाम का ही भजन करता हूँ।
इस श्रावण मास में हम भोलेनाथ के आडंबर से विरक्त स्वरूप का स्मरण करते है। शिव सदैव काल को स्मरण रखते है और महाँकाल स्वरूप में काल पर विजय प्राप्त करते है। शिव का सत्यम-शिवम्-सुंदरम स्वरूप करुणा की प्रबलता पर बल देता है और आवेश व गर्जना से दूर रहकर मौन स्वरूप के महत्व को उजागर करता है। त्रिशूलधारी भगवान शिव सृष्टि के कल्याण के लिए नीलकंठ बनकर ध्यानमग्न स्वरूप में भी अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते है। उन्हीं महादेव का रुद्रअवतार निष्काम भक्ति, समर्पण एवं अनंत शक्ति का पर्याय स्वरूप रामदूत हनुमान भी भक्तों को कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है।
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