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मंगल कलश यात्रा के साथ भगवान परशुराम कथा शुरू

 

- अक्षय तृतीया और अभिजीत मुहूर्त से भगवान परशुराम का गहरा नाता- पं. रमेश शर्मा
- गुरुदेव दया करके, चरणों में जगह देना...श्रीराम जय राम जय श्रीराम... श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी... आदि संगीतमय भजनों की दी प्रस्तुुति
- पुरातन जीवन शैली और वैदिक परंपराओं की आधुनिक विज्ञान आज तक करा रहा पुष्टि
- वेद ऋचाओं का गुणगाण हंसदास मठ पर
इंदौर। भगवान परशुराम श्री हरिनारायण के अवतार है। उन्हें चिरंजीवी (सदा अमर) रहने का वरदान है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। भगवान परशुराम के जन्म के बाद जन्म समय को
अभिजीत मुहूर्त और दिन को अक्षय तृतीय के रूप में आज भी हम मनाते आ रहे हैं। इस दिन मांगलिक कार्यों के लिए किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती है, यानी अक्षय तृतीया और अभिजीत मुहूर्त से भगवान परशुराम का गहरा नाता है।
यह विचार भगवान परशुराम की कथा के प्रथम दिन ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने व्यक्त किए। आयोजक विश्व ब्राह्मण समाज संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. योगेन्द्र महंत ने बताया कि भगवान परशुराम की कथा के पूर्व श्री हंसदास मठ से बड़ा गणपति तक मंगल कलश यात्रा निकाली गई। यात्रा में बैंड-बाजे, घोड़े-बग्घी के साथ संत-महात्मा, प्रबुद्धजन और वैदिक पाठशाला के विद्यार्थी शामिल हुए। इस दौरान महिलाएं सिर पर मंगल कलश रखकर मनमोहक गीतों की प्रस्तुति दे रही थीं। यात्रा का जगह-जगह स्वागत सत्कार भी किया गया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से महामंडलेश्वर महंत श्री रामचरणदास महाराज, महंत श्री प्रवीणानंद महाराज, पं. योगेन्द्र महंत, पवनदास महाराज, रामचंद्र शर्मा वैदिक, केदार शर्मा, अशोक चतुर्वेदी, वर्षा शर्मा, नीता शर्मा, जया तिवारी आदि प्रमुख रूप से शामिल हुए। कथा के दौरान गुरुदेव दया करके, चरणों में जगह देना...श्रीराम जय राम जय श्रीराम... श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी... आदि संगीतमय भजनों की दी प्रस्तुुति दी गई। संगीतमय भगवान परशुराम की कथा 6 और 7 जुलाई को दोपहर 3 से 6 बजे तक एयरपोर्ट रोड स्थित श्री हंसदास मठ पर अनवरत जारी रहेगी।
- 21 ज्योतिर्लिंग और 31 तीर्थ स्थल की स्थापना
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने भगवान परशुराम के जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग सुनाए और बताया कि अखंड भारत जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, इरान आदि स्थान आते हैं। यहां पर तीन हजार वर्ष पूर्व भगवान परशुराम ने 21 ज्योतिर्लिंग और 31 धर्म क्षेत्र की स्थापना की थी। वर्तमान में भारत की भौगिलक सीमा में 12 ज्योतिर्लिंग को ही हम जानते हैं। भगवान परशुराम के जीवन से जुड़े कई हम अहम पहलू है, जिन्हें हमें जानने की आवश्यकता है।
- महाभारत और रामायण दोनों में भगवान परशुराम
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने बताया कि भगवान शिव के शिष्य भगवान परशुराम अनादिकाल से चिरंजीवी हैं। महाभारत और रामायण दोनों में ही भगवान परशुराम के प्रसंग विद्यमान है। इसके साथ ही वेदों में भी भगवान परशुराम के कई प्रसंग दर्शाए गए हैं। भगवान परशुराम की कथा के दौरान कई बार वेद ऋचाओं की महिमा का गुणगाण भी व्यासपीठ से किया गया।
क्रोध और वासना विनाश के कारण
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि क्रोध और वासना मनुष्य के लिए घातक है। दोनों ही परिस्थितियों में मनुष्य का विवेक शून्य हो जाता है और वह अनैतिक अकल्पनीय घटना कर बैठता है, जो उसके विनाश का कारण बनती है। व्यक्ति को चाहिए कि वह दोनों से दूरी बनाए रखे और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखे।
यह भी कहा व्यासपीठ से
- हमारे बड़े-बूढ़े कहते आए हैं कि पीपल के पेड़ के समक्ष शाम के समय दीपक लगाए और परिक्रमा करे, इससे हमें 24 घंटे ऑक्सीजन मिलती है और  वायु प्रदूषण भी दूर होता है। साथ ही पीपल का पेड़ रोग और कीट का क्षरण भी करता है। विज्ञान भी पीपल के पेड़ को जीवन के लिए उपयोगी बताता है।
-संतान को श्रेष्ठ बनाने का श्रेय मां को दिया गया है। भारतीय संस्कृति में मां को प्रथम गुरु कहा गया है। मां ही बच्चों के व्यक्तित्व विकास और सामाजिक महत्व को कई गुना बढ़ाने में सहायक है और बढ़ा भी रही है।
- कोरानाकाल में सोशल डिस्टेंसिंग का नारा डॉक्टरों ने खोज के बाद निकाला, जबकि दो हाथ दूर से नमस्कार करना हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा रहा है। यानी भारतीय संस्कृति शुरू से ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रही है।
- दाहिने हाथ से भोजन करते हैं और बायां हाथ सफाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। यानी हमारी संस्कृति शुरू से ही उत्कृष्ठ रही है, जिसे विज्ञान की भाषा में हाइजिंग शब्द आज की पीढ़ी बोल रही है।

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