दुनिया के तमाम देश ऐसे हैं जहां पर आरंभ से लेकर तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा भी उसी देश की भाषा में दी जाती है। हमारे स्वतंत्र भारत में ठीक इसके विपरीत विचार है। बिना अंग्रेजी के हम उच्च शिक्षित नहीं हो सकते हैं। ऐसे ही विचार उन मनीषियों के विचारों और चिंतन की तपस्या पर कुठाराघात करते हैं, जिन्होंने अपना सारा जीवन अपनी भाषा और हिंदी के लिए समर्पित किया, इसी के लिए जिये और इसी के लिए मरे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति भारत की धरोहर है और यहीं से चलकर महात्मा गांधी ने वर्धा में हिंदी की स्थापना की, जो उनकी धरोहर है।
पूर्व अधिष्ठाता एवं अध्यक्ष साहित्य विद्यापीठ अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के प्रोफेसर सूरज पालीवाल ने हिंदी साहित्य समिति द्वारा गुरुवार को आयोजित गोष्ठी में व्यक्त किए। इसका विषय रहा ’समकालीन लेखन की चुनौतियों एवं संभावनाएं’। पालीवाल ने हिंदी के प्राचीन इतिहास, साहित्यकारों, पत्रिकाओं तथा पाठकों की रुचि के संदर्भ में कई उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि आज लेखन की सबसे बड़ी चुनौती लेखक द्वारा लिखा गया स्वयं के द्वारा सर्वश्रेष्ठ समझना है और उसको प्रोत्साहन मिलता है व्हाट्सएप्प जैसे समूहों में की गई असत्य टिप्पणियों से।
तुलसीदासजी ने समाज के सामने सच प्रस्तुत किया
पालीवाल ने कहा कि साहित्य धीरे-धीरे क्रांति करता है वह लड़ने का साधन नहीं है। इस संदर्भ उन्होंने प्रेमचंद, उनके गोदान के अलावा मुक्तिबोध और कुछ और रचनाकारों के उदाहरण प्रस्तुत किए तथा तुलसीदास का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने जन-सामान्य के लिए लिखा, सत्ता का विरोध किया, समाज के सामने सच प्रस्तुत किया और इसे ही साहित्य कहा जा सकता है। पालीवाल ने अपने उद्बोधन में समिति एवं वीणा पत्रिका द्वारा हिंदी की सेवा के लिए प्रशंसा की।
कई शोधार्थी भी उपस्थित थे
शुरुआत में दीप प्रज्वलन के बाद अतिथि का स्वागत राकेश शर्मा, सूर्यकांत नागर, अनिल भोजे द्वारा किया गया। स्वागत उद्बोधन के साथ समिति का संक्षिप्त इतिहास प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर द्वारा बताया गया। अतिथि का परिचय प्रोफेसर प्रणव श्रोत्रिय ने दिया। विषय की प्रस्तावना के साथ संचालन शोध मंत्री डाॅ. पुष्पेंद्र दुबे ने किया। अंत में आभार प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में समिति के सभापति सत्यनारायण सत्तन, न्यासी न्यायमूर्ति वी.डी. ज्ञानी, डाॅ. पद्मा सिंह, राजेश शर्मा, नयन राठी, उमेश पारिख, गिरेंद्र सिंह भदौरिया, रामचंद्र अवस्थी, मोहन रावल, सुनील शुक्ल, डाॅ. संध्या गंगराडे, डाॅ. अनिता नाईक, नमिता शुक्ल, शोभा पालीवाल, डाॅ. अखिलेश राव के अलावा यशवंत काछी, उमंग सिंह तोमर, शिवानी वनवासी, सोमेश सिंह तोमर, नेहा उदासी आदि शोधार्थी भी उपस्थित थे।
0 टिप्पणियाँ