अभी शिव जी का प्रिय माह सावन चल रहा है। इस मास में शिव जी की विशेष पूजा की जाती है। पूजा में महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हैं तो भक्त की इच्छाएं जल्दी पूरी हो सकती हैं। इस मंत्र के जप से भक्तों का आत्मविश्वास बढ़ता है और नकारात्मकता दूर होती है। विचार सकारात्मक बनते हैं।
ये है महामृत्युंजय मंत्र - ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्द्धनम्। ऊर्वारुकमिव बंधनात, मृत्योर्मुक्षिय मामृतात्।।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, महामृत्युंजय मंत्र के जप से शिव जी की कृपा मिलती है।
मंत्र का अर्थ - हम त्रिनेत्रधारी भगवान शिव का सच्चे मन से ध्यान करते हैं। भगवान शिव हमारे जीवन में मधुरता, सुख-शांति को बढ़ाते हैं। हम जीवन और मृत्यु के डर से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हों। भगवान शिव हम पर ऐसी कृपा करें।
ऐसे कर सकते हैं महामृत्युंजय मंत्र का जप
महामृत्युंजय मंत्र का जप अपने घर के मंदिर में भी कर सकते हैं। मंत्र जप के लिए घर के मंदिर में शिव पूजा करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल चढ़ाएं। चंदन से तिलक करें। दीपक जलाएं। आसन पर बैठकर मंत्र जप करना चाहिए। जप कम से कम 108 बार करें। इसके लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करना चाहिए।
मंत्र जप से मिलते हैं ये लाभ भी
महामृत्युंजय मंत्र का जप लंबे स्वर और गहरी सांस के साथ किया जाता है। एक जैसे लय में बार-बार मंत्र जप किया जाता है। इस कारण शरीर में कंपन होता है, ऊर्जा बढ़ती है। शरीर के सातों चक्र एक्टिव होने लगते हैं। रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। जो भक्त नियमित रूप से रोज इस मंत्र का जप करते हैं, उन्हें जल्दी ही सकारात्मक फल मिल सकते हैं।
मार्कंडेय ऋषि ने रचा था महामृत्युंजय मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र की रचना मार्कंडेय ऋषि ने की थी। पुराने समय में ऋषि मृगशृंग और उनकी पत्नी सुव्रता की कोई संतान नहीं थी। संतान की कामना के साथ इन्होंने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए। शिव जी ने उनसे कहा कि आपके भाग्य में संतान नहीं है, लेकिन आपने तप किया है तो मैं आपको पुत्र होने का वर देता हूं, लेकिन ये पुत्र अल्पायु होगा, इसका जीवन 16 वर्ष का ही होगा।
शिव जी के वर से ऋषि मृगशृंग के यहां पुत्र का जन्म हुआ। बच्चे का नाम मार्कंडेय रखा गया। जब बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तो माता-पिता ने उसे शिक्षा के लिए अन्य ऋषियों के आश्रम में भेज दिया। जब मार्कंडेय की शिक्षा पूरी हुई तो उसकी आयु 15 वर्ष हो गई थी। शिक्षा पूरी होने के बाद मार्कंडेय अपने घर पहुंचा तो उसने देखा कि माता-पिता दुखी हैं।
दुख की वजह पूछने पर माता-पिता ने उसके अल्पायु होने की बात बताई। मार्कंडेय ने कहा कि आप चिंता न करें, ऐसा कुछ नहीं होगा। इसके बाद मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगा। तप करते-करते एक वर्ष और बीत गया। मार्कंडेय की उम्र 16 वर्ष हो चुकी थी। यमराज मार्कंडेय के प्राण हरण करने के लिए प्रकट हो गए। मार्कंडेय ने तुरंत ही शिवलिंग को पकड़ लिया। तभी वहां शिव जी प्रकट हुए।
शिव जी ने कहा कि मैं इस बालक की तपस्या से प्रसन्न हूं और इसे अमरता का वरदान देता हूं। शिव जी ने मार्कंडेय से कहा कि अब से जो भी भक्त महामृत्युंजय मंत्र का जाप करेगा, उसकी सभी परेशानियां दूर होंगी और असमय होने वाली मृत्यु का भय भी दूर होगा।
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