बड़े पर्दे पर महाकाल दिखे तो दर्शक झुककर प्रणाम करते नजर आए। मालवी और ठेठ उज्जैनी भाषा के संवाद ने दर्शकों को अपनापन महसूस कराया। फिर टावर चौक हो या फिर सतीगेट या फिर सख्याराजे धर्मशाला, गोपाल मंदिर की दुकानें, रामघाट पर मां शिप्रा की आरती, जो हमारे लिए गौरव की बात है।
इसी बीच फिल्म से उज्जैन और महाकाल का नाम हटा दिया गया। कारण, इसके सब्जेक्ट को लेकर महाकाल मंदिर के महेश पुजारी की आपत्ति। फिर भी फिल्म रिलीज हुई, अभी भी आपत्ति करने वाले कानूनन आगे बढ़ने की बात कह रहे हैं।
फिल्म के जूनियर आर्टिस्ट आशीष जैन कहते हैं कि आपत्ति अपनी जगह है। इससे नुकसान तो होगा ही कि आगे से यहां बाॅलीवुड आने से कतराएगा। फिल्म की शूटिंग ने 500 लोगों को रोजगार दिया और भविष्य में ऐसी फिल्मों के लिए लाइव लोकेशन का बेहतरीन विकल्प।
महाकाल लोक बनने के बाद यहां फिल्मों की शूटिंग का बड़ा अवसर है। विवाद का पटाक्षेप समय रहते हो जाता तो उज्जैन और महाकाल का जिक्र भी होता। फिल्म देखकर बाहर निकले दर्शक अदिति गर्ग, अवधेश शर्मा, आयुषी चौरसिया, मनीषा सोलंकी, रोहित सोलंकी का ऐसा ही दर्द था।
सेक्स शब्द का उपयोग महाकाल के साथ
इधर, फिल्म को लेकर आपत्ति जताने वाले महाकाल मंदिर के महेश पुजारी कहते हैं- फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला है। हमने फिल्म देखी। इसमें सेक्स खुला बताया गया है। इसे महाकाल से जोड़कर दिखाया गया है।
हमारी आपत्ति के बाद 28 कट हुए लेकिन अभी भी हम इससे संतुष्ट नहीं। नोटिस का जवाब मिलने के बाद हाईकोर्ट जाएंगे और पीएम को भी पत्र लिखेंगे। रही बात रोजगार की तो उज्जैन को कोई रोजगार नहीं मिला। वैसे भी रोजगार और हमारी आस्था अलग है। हम डायरेक्टर से भी यह मांग करते हैं कि हिम्मत है तो दूसरे धर्म को लेकर ऐसी फिल्म बनाएं। हम आगे भी कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।
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