श्रीकृष्ण जन्म के 15 दिनों बाद राधाष्टमी पर्व होता है। जिस तरह जन्माष्टमी मनाते हैं वैसे ही राधाष्टमी भी मनाते हैं। इस बार ये 23 सितंबर, शनिवार को है। ये पर्व खासतौर से मथुरा, वृंदावन और बरसाना में मनता है।
इस दिन राधा-कृष्ण मंदिरों में महा पूजा होती है। फिर रातभर जागरण और भजन होते हैं। इसलिए पूरे ब्रज के मंदिरों में दर्शन के लिए लोग आते हैं। बरसाना के राधा मंदिर में इसी दिन महा पूजा होती है।
राधा-कृष्ण की पूजा का विधान
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि राधाष्टमी के दिन देवी राधा के साथ ही उनके प्रिय श्रीकृष्ण की भी पूजा जरूर करें। दोनों का अभिषेक करने के बाद श्रंगार करें और मौसमी फलों के साथ ही मिठाई और माखन मिश्री का नैवेद्य लगाएं। दोनों की आरती कर के प्रसाद बांटे। इससे सुख-समृद्धि बढ़ती है।
पूजा विधि (डॉ. मिश्र के मुताबिक)
देवी राधा और श्रीकृष्ण को गंगाजल मिले पानी से नहलाएं। फिर पंचामृत से अभिषेक करें। इसके बाद श्रृंगार करें। फिर मिट्टी या तांबे के साफ बर्तन में पर दोनों मूर्तियां स्थापित करें। अबीर, गुलाल श्रीकृष्ण को और राधा जी को कुमकुम, हल्दी, मेहंदी चढ़ाएं। दोनों मूर्तियों पर चंदन, अक्षत, फूल और इत्र अर्पित करें। साथ ही अन्य पूजा सामग्री भी चढ़ाएं।
पूजा के बाद भोग लागाएं और धूप-दीप अर्पित कर के आरती करें। फिर राधा-कृष्ण पर फूलों की बारिश के साथ पुष्पांजली करें। सुहागनों को खाना खिलाकर सुहाग की चीजों का दान करें। इसके बाद खुद खाना खाएं। मान्यता है कि इस तरह व्रत-पूजा करने से पाप खत्म हो जाते हैं। सुख और समृद्धि बढ़ती है।
देवी राधा के बारे में क्या कहते हैं पुराण
1. भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के मुताबिक, द्वापर युग में भादौ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर श्रीकृष्ण प्रकट हुए उसके 15 दिन बाद यानी 2. शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर महाराज वृषभानु के यहां भगवती राधा प्रकट हुई। तब से ही इस तिथि को राधाष्टमी कहते हैं।
3. नारद पुराण में इस बात का जिक्र है कि राधाष्टमी व्रत करने से ब्रज का दुर्लभ रहस्य पता चल जाता है।
4. स्कंद पुराण का कहना है कि राधा ही श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी वजह से उन्हें राधारमण कहते हैं।
5. पद्म पुराण में परमानंद रस को ही राधा-कृष्ण का रूप माना है। इनकी आराधना के बिना कोई परम आनंद महसूस नहीं कर सकता।
6. शिव पुराण में कहा गया है कि सुदामा को राधाजी ने श्राप दिया था।
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