धर्म ही वह तत्व है, जो हमें पशुओं से अलग करता है। धर्म में सेवा भी शामिल है और अध्यात्म भी। धर्म ही हमारे जीवन का आधार है। धर्म के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। जीवन का कल्याण धर्म से ही संभव है। गीता भवन के संस्थापक बाबा बालमुकुंद ने गीता भवन के रूप में हम सबको एक ऐसा सेवा सदन स्थापित किया है, जो युगों-युगों तक पीड़ित मानवता की सेवा के साथ भटके हुए लोगों का भी मार्गदर्शन करेगा।
रामकृष्ण मिशन भोपाल के सचिव स्वामी नित्य ज्ञानानंद महाराज ने गुरुवार को गीता भवन के संस्थापक बाबा बालमुकुंद की 41वीं पुण्यतिथि पर ‘धर्म, अध्यात्म और सेवा’ विषय पर उक्त विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता रामकृष्ण मिशन इंदौर के सचिव स्वामी निर्विकारानंद ने की। वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद एवं नैमिषारण्य से आए स्वामी पुरुषोत्तमानंद सरस्वती भी इस अवसर पर उपस्थित थे। शुरू में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, प्रेमचंद गोयल, मनोहर बाहेती, दिनेश मित्तल, टीकमचंद गर्ग, हरीश माहेश्वरी, महेशचंद्र शास्त्री आदि ने अतिथि संतों के साथ बाबा बालमुकुंद के चित्र पर माल्यार्पण किया।
अध्यक्षता करते हुए स्वामी निर्विकारानंद ने कहा कि दुनिया का प्रत्येक जीव आनंद चाहता है, दुख कोई नहीं चाहता, लेकिन यदि प्रारब्ध में दुख है तो दुख आएगा ही। हम आनंद की प्राप्ति के लिए कई तरह के जतन करते रहते हैं। वस्तुओं का संग्रह, धन और यश की प्राप्ति, स्वास्थ्य से लेकर अनेक ऐसे कर्म हैं, जिनके माध्यम से हम आनंद के अभिलाषी बनते हैं, लेकिन हम जिस तरह तीर्थ यात्रा पर जाकर थोड़े दिन बाद वापस घर लौट आते हैं, वैसे ही हमारा मूल स्वरूप सत है, इसलिए हम अपने मूल स्वरूप की ओर लौट आते हैं। मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। जब तक हमारे मन में कामनाएं और वासनाएं रहेंगी, तब तक आवागमन का सिलसिला भी चलता रहेगा। जीवन की धन्यता परमार्थ, धर्म और सेवा के रास्ते पर चलने से ही संभव है, जैसे बाबा बालमुकुंद ने अपने जीवन काल में गीता भवन के रूप में हम सबको एक ऐसा सेवा केंद्र दिया है, जो हर दृष्टि से हमारे लिए उपयोगी साबित हो रहा है।
पुष्पांजलि सभा के बाद सभी अतिथि संत एवं गीता भवन ट्रस्ट मंडल के सदस्य बाबा बालमुकुंद के सुसज्जित समाधि स्थल पहुंचे और उन्हें श्रद्धा सुमन समर्पित किए। प्रसाद वितरण के साथ समापन हुआ। इस अवसर पर बाबा बालमुकुंद के पुत्र संजीव कोहली एवं परिवार के अन्य सदस्य भी उपस्थित थे। संचालन पं. महेशचंद्र शास्त्री ने किया और आभार रामविलास राठी ने माना।
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