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श्रीकृष्ण की कथाएं और उनकी सीख:बड़ी सफलता चाहते हैं तो योजना बनाए बिना काम की शुरूआत न करें, झूठे आरोप लगे तो धैर्य न छोड़ें

श्रीकृष्ण से जुड़ी कथाओं में जीवन प्रबंधन के ऐसे सूत्र हैं, जिन्हें अपनाने से हमारी बड़ी-बड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर पढ़िए श्रीकृष्ण की कुछ खास कथाएं और उनकी सीख...

बड़ी सफलता चाहते हैं तो योजना बनाए बिना काम की शुरूआत न करें

जब भगवान विष्णु श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे। देवकी और वसुदेव कंस की कैद में थे। कंस ने देवकी-वसुदेव की 6 संतानों का वध कर दिया था। सातवीं संतान के रूप में बलराम देवकी के गर्भ में आए तो भगवान विष्णु ने योगमाया से कहा था कि आप इस सातवीं संतान को देवकी के गर्भ से निकाल कर वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दो। इसके बाद कंस को ये सूचना दी जाएगी कि सातवां गर्भ गिर गया है।

योगमाया ने ऐसा ही किया। इसके बाद जब आठवीं संतान के जन्म का समय आया तो भगवान ने योगमाया से कहा कि अब मेरे अवतार लेने का समय आ गया है। जब मेरे अवतार का जन्म होगा, ठीक उसी समय आप आप गोकुल में यशोदा के गर्भ से जन्म लेना। वसुदेव जी कंस के कारागर से निकालकर मुझे गोकुल पहुंचाएंगे और आपको लेकर कंस के कारागार में आ जाएंगे। जब कंस आठवीं संतान को मारने के लिए आएगा तब आप मुक्त हो जाना।

भगवान ने जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार श्रीकृष्ण का अवतार हो गया।

कथा की सीख - इस कथा में भगवान ने संदेश दिया है कि जब भी कोई काम करना हो तो उसकी योजना जरूर बनाएं। योजना अच्छी होगी तो सफलता जरूर मिलेगी।

ऐसे काम न करें, जिनकी वजह से गलत लोगों की ताकत बढ़ती है

बाल कृष्ण माखन चोरी की लीला कर रहे थे। गोकुल के इस वजह से काफी परेशान थे। एक दिन गांव के नंद बाबा और यशोदा के पास पहुंचे और कान्हा की शिकायत करने लगे।

नंद बाबा ने कृष्ण से पूछा कि तुम माखन चोरी क्यों करते हो, जबकि हमारे घर में तो बहुत माखन है।

कृष्ण ने कहा कि आप लोग मेहनत से दूध, दही, घी, माखन तैयार करते हैं और फिर ये चीजें कर के रूप में दुष्ट कंस को दे देते हैं और इस वजह से गांव के बच्चों को माखन नहीं मिलता है। आपके इस काम से कंस की ताकत लगातार बढ़ रही है। अगर आप कंस को कर देना नहीं रोकेंगे तो मैं तोड़-फोड़ करता रहूंगा। ताकि ये माखन कंस के पास न पहुंचे और गांव के बच्चों को मिल सके।

कथा की सीख - इस कथा में श्रीकृष्ण ने संदेश दिया है कि हमें ऐसे काम नहीं करना चाहिए, जिनकी वजह से गलत लोगों की ताकत बढ़ती है।

जब कोई झूठा आरोप लगे तो धैर्य न छोड़ें

द्वारका में एक सूर्य भक्त था सत्राजित। उसे सूर्य देव ने स्यमंतक नाम की चमत्कारी मणि दी थी। ये मणि रोज बीस तोला सोना उगलती थी।

एक दिन श्रीकृष्ण ने सत्राजित से कहा कि आप ये मणि राजकोष में देंगे तो इससे मिले धन से प्रजा की अच्छी देखभाल हो सकेगी।

सत्राजित ने श्रीकृष्ण को मणि देने से मना कर दिया। इस घटना के कुछ दिन बाद सत्राजित के भाई प्रसेनजित ने मणि चुरा ली। प्रसेनजित मणि लेकर जंगल में भाग गया। जंगल में एक शेर ने प्रसेनजित को मार दिया और खा गया। मणि जंगल में ही गिर गई।

सत्राजित को जब प्रसेनजित और अपनी मणि नहीं मिली तो उसने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि कृष्ण ने ही मेरी मणि चुराई है और मेरे भाई की हत्या कर दी है।

श्रीकृष्ण पर चोरी और हत्या का कलंक लग गया। श्रीकृष्ण ने उस समय क्रोध नहीं किया, धैर्य बनाए रखा और इस आरोप को गलत साबित करने के लिए जंगल की ओर चल दिए। जंगल में श्रीकृष्ण को शेर के पैरों के निशान दिखे और निशान के पास हड्डियों का ढेर दिखा। श्रीकृष्ण समझ गए कि प्रसेनजित को शेर ने मार दिया है और मणि यहीं कहीं गिर गई है।

श्रीकृष्ण मणि खोजते हुए एक गुफा में पहुंच गए। गुफा में जामवंत रहते थे। श्रीकृष्ण ने मणि मांगी तो जामवंत नहीं दी। इसके बाद दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीकृष्ण जीत गए। जामवंत समझ गए कि ये भगवान श्रीराम के ही अवतार हैं। इसके बाद जामवंत ने मणि श्रीकृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भी भगवान के साथ कर दिया। द्वारका लौटकर श्रीकृष्ण ने वह मणि जामवंत से लेकर सत्राजित को दे दी और पूरी सच्चाई बता दी। सत्राजित को अपनी गलती पर बहुत पछतावा हुआ।

कथा की सीख - हमारे ऊपर जब भी झूठे आरोप लगे तो हमें धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि शांति से पूरी बात समझें और आरोपों को झूठा साबित करें।

कभी भी अपने बल पर घमंड न करें और दूसरों को कमजोर न समझें

महाभारत युद्ध में अर्जुन और कर्ण आमने-सामने थे। दोनों दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से लड़ रहे थे। जब-जब अर्जुन के तीर के कर्ण के रथ पर लग रहे थे तो कर्ण का रथ बहुत पीछे खिसक रहा था। दूसरी ओर जब-जब कर्ण के तीर अर्जुन के रथ पर लगते तो उसका रथ थोड़ा सा ही पीछे खिसकता था।

ये देखकर अर्जुन को घमंड हो गया कि उसके बाणों में ज्यादा शक्ति है। अर्जुन ने ये बात श्रीकृष्ण से कही तो भगवान ने कहा कि तुम्हारे बाणों से ज्यादा शक्ति कर्ण के बाणों में है।

भगवान की बात सुनकर अर्जुन ने कहा कि ये कैसे संभव है, मेरा रथ तो थोड़ा सा ही पीछे खिसक रहा है।

श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे रथ पर मैं स्वयं बैठा हूं, ऊपर ध्वजा पर हनुमान जी विराजित हैं, तुम्हारे रथ के पहिए को शेषनाग ने थाम रखा है। इतना होने के बाद भी कर्ण के बाण के ये रथ पीछे खिसक रहा है तो इसका मतलब यही है कि उसके बाणों में ज्यादा शक्ति है। ये बात सुनकर अर्जुन को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसका घमंड टूट गया।

कथा की सीख - इस कथा में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सीख दी है कि कभी अपनी शक्ति का घमंड न करें और शत्रु को कमजोर न समझें।

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