विश्व के सर्वाधिक उत्पादक देशों में काम के घंटे 40 से भी कम है। बांग्लादेश में काम के घंटे 46.9 घंटे, पाकिस्तान में 46.7 घंटे और चीन में काम के घंटे 46.1 से भी ज्यादा हैं जबकि भारत में औसत इससे कहीं ज्यादा हैं।
देश के बड़े उद्योगपति एनआर नारायण मूर्ति के बयान के बाद पूरी दुनिया में काम के घंटों को लेकर बहस छिड़ी हुई है। बहस के बीच में साल 2023 की विश्व के सर्वाधिक उत्पादक देशों की सूची ने एक अलग राय बना दी है। यह सूची कहती है कि जिन देशों में काम के घंटे कम हैं, वहां पर प्रति व्यक्ति उत्पादक क्षमता ज्यादा है। लक्जमबर्ग दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादक क्षमता वाला देश है, जहां काम के घंटे हफ्ते में औसतन 36.1 हैं जो सालाना और घटकर 1473.3 रह जाते हैं। जबकि भारत दुनिया का वो सातवां देश है, जहां काम के घंटे ज्यादा हैं। बावजूद इसके प्रति व्यक्ति उत्पादक क्षमता में उसे शीर्ष 40 देशों की सूची में जगह नहीं मिली है।
इंफोसिस के मालिक नारायणमूूर्ति ने छेड़ी बहस
पिछले दिनों इंफोसिस के मालिक और देश के बड़े उद्योगपति एनआर नारायण मूर्ति ने युवाओं से अपील की थी कि वह देश की आर्थिक समृद्धि में साझेदारी के लिए अपने वर्किंग हॉवर 'काम के घंटे' बढ़ाकर सप्ताह में 70 घंटे तक करें। हालांकि एक्सपर्ट, दुनिया भर की रिसर्च और रिपोर्ट उनके इस बयान को एक सिरे से खारिज कर रही हैं। दुनिया के सबसे ज्यादा प्रोडक्टिव देशों की हालिया सूची जारी हुई, जिसमें उन देशों को जगह नहीं मिली, जहां पर काम के घंटे ज्यादा हैं। यूएई ऐसा देश है जो दुनिया में सबसे ज्यादा काम के घंटे रखता है, यहां पर सप्ताह में औसतन 52.6 घंटे हैं, बावजूद वह उत्पादक क्षमता वाली शीर्ष सूची में नहीं है।
भारत के लिए भी मुश्किलें कम नहीं
भारत दुनिया में औसत काम के घंटों के मामले में सातवें नंबर पर है जहां पर काम के घंटे ज्यादा हैं। हमारे यहां पर औसत काम के घंटे प्रति सप्ताह 47.7 है जो बांग्लादेश 46.9 घंटे, पाकिस्तान 46.7 घंटे और चीन 46.1 से भी ज्यादा हैं। लेकिन यह देश शीर्ष उत्पादक देशों की सूची से बाहर हैं।
काम के घंटे कम तो परिणाम बेहतर
अगर दुनिया के शीर्ष प्रोडक्टविटी वाले देशों की बात करें तो साल 2023 में सबसे शीर्ष पर लक्ज़मबर्ग रहा जबकि दूसरे नंबर पर नार्वे और तीसरे नंबर पर आयरलैंड जैसे देश रहे। यहां पर सप्ताह में काम के घंटे कम हैं। इसके साथ ही सालाना पे लीव भी हैं, जिसके चलते काम के घंटे और कम हो जाते हैं। लक्जमबर्ग में सप्ताह में पांच दिन काम करना होता है, जिसमें आठ घंटे की शिफ्ट है और दो घंटे से ज्यादा ओवरटाइम की अनुमति नहीं है।
विश्व के सर्वाधिक उत्पादक क्षमता वाले शीर्ष 10 देश— 2023
रैंक देश सालाना काम के घंटे
1. लक्ज़मबर्ग 1473.3
2. नार्वे 1424.6
3. आयरलैंड 1657.5
4. सिंगापुर 2293.2
5. स्विटजरलैंड 1528.7
6. डेनमार्क 1371.6
7. नीदरलैंड 1427
8. आइसलैंड 1449.2
9 जर्मनी 1340.9
10. आॅस्ट्रिया 1443.7
सबसे ज्यादा वर्किंग हॉवर वाले देश
रैंक देश सप्ताह में काम के घंटे
1. यूएई 52.6
2. गाम्बिया 50.8
3. भूटान 50.7
4. लिसोटो 49.8
5. कांगो 48.6
6. कतर 48
7. भारत 47.7
8. मॉरिटानिया 47.5
9. लाइबेरिया 47.2
10. बांग्लादेश 46.9
काम के घंटे नहीं, इम्प्लाई इंगेजमेंट बढ़ाएं
आईआईएम इंदौर के निदेशक हिमांशु राय का कहना है, दुनिया में रिसर्च कहती है कि अगर काम के घंटे 40 से ज्यादा होते हैं तो प्रोडक्टविटी घटने लगती है। 60 घंटों पर यह दो तिहाई तक घट जाती है। ऐसे में सप्ताह में 40 घंटे से ज्यादा का काम नहीं होना चाहिए। अगर इससे ज्यादा किसी को करना है तो वह कंपनी के भीतर हिस्सेदारी रखने वाले लोग होते हैं। अगर प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ानी है तो इसके लिए जरूरी है कि आप इम्प्लाई इंगेजमेंट बढ़ाएं। यह इंगेजमेंट मोटिवेशन और अलाइनमेंट के जरिए तय होती है। अगर आप कर्मचारी के काम के घंटे नियत करेंगे, उसको बेहतर वेतन-भत्ते और दूसरी सुविधाएं देंगे तो उसकी क्षमताएं बढ़ेंगी। इसके साथ ही कर्मचारियों को कंपनी के विजन और गोल से भी जोड़ने की जरूरत है।
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