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लोहाघाट: भीड़ और जाम से मुक्त शांत हिल स्टेशन

गर्मी की छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं। इस मौसम में सभी कम से कम एक बार यात्रा करने के लिए निकलते ही हैं। ज्यादातर लोग हिल स्टेशनों की तरफ ही जाते हैं, इसलिए सभी हिल स्टेशनों पर खूब भीड़ हो जाती है। रोज अखबारों और सोशल मीडिया में भीड़ व जाम की खबरें आती रहती हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे हिल स्टेशन के बारे में, जहां न भीड़ होती है और न ही जाम होता है।

उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित लोहाघाट ऐसा ही एक हिल स्टेशन है। समुद्र तल से 1700 मीटर ऊपर यह एक ऐसा ऑफबीट हिल स्टेशन है, जहां कभी भी बहुत ज्यादा भीड़ नहीं होती। यहां का मौसम मई और जून में भी खुशनुमा बना रहता है और सूर्यास्त के बाद आपको गर्म कपड़े भी पहनने पड़ सकते हैं। यहां आप चीड़ और देवदार दोनों के जंगलों का आनंद ले सकते हैं। यहां बाकी हिल स्टेशनों की तरह माल रोड तो नहीं है, लेकिन आप अपनी मर्जी से किसी भी तरफ टहलने निकल सकते हैं और प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले सकते हैं। साफ मौसम में लोहाघाट से आप हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का भी दीदार कर सकते हैं, जिनमें त्रिशूल, नंदादेवी और पंचचूली प्रमुख हैं।

बाणासुर का किला

लोहाघाट से 7 किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर एक पुराने किले के अवशेष हैं, जिसे बाणासुर का किला कहा जाता है। यहां तक जाने के लिए आपको लगभग एक किमी पैदल भी चलना पड़ेगा। यहां आप किले के अवशेष तो देख ही सकते हैं, हिमालय की बर्फीली चोटियों का भी दीदार कर सकते हैं। इनके अलावा ऊपर पहाड़ी से देखने पर अनगिनत कुमाऊंनी गांव और सीढ़ीदार खेत भी देखे जा सकते हैं। इसी रास्ते में एक छोटी-सी झील भी है, जिसका नाम कोली ढेक लेक है। यह एक मानवनिर्मित झील है और आप यहां बोटिंग का आनंद ले सकते हैं।

एबट माउंट

लोहाघाट से इसकी दूरी 9 किमी है। इसके समुद्र तल से ऊंचई 2,000 मीटर है और यहां आपको हर तरफ देवदार के ही पेड़ मिलेंगे। इन्हीं देवदारों के बीच में एक बड़ा-सा मैदान है, जहां आप कैंपिंग भी कर सकते हैं। एबट माउंट प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ अपने पुराने चर्च के कारण भी प्रसिद्ध है। आज यह चर्च एक खंडहर है और इसे भुतहा स्थान माना जाता है। जब भी भारत के शीर्ष भुतहा स्थानों का जिक्र होता है, तो उनमें एबट चर्च का नाम अवश्य होता है।

मायावती आश्रम

इसे अद्वैत आश्रम भी कहते हैं और इस आश्रम को 1899 में स्वामी विवेकानंद ने स्थापित किया था। यह समुद्र तल से 1950 मीटर ऊपर है और चारों तरफ से देवदार से घिरा है। यहां आकर अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।

आदि कैलाश यात्रा

लोहाघाट से पिथौरागढ़ केवल 60 किमी दूर है और धारचूला 160 किमी दूर है। धारचूला से आदि कैलाश की यात्रा आरंभ होती है। पहले यह यात्रा पैदल होती थी, लेकिन अब सड़क बन जाने के कारण वाहनों से होने लगी है। आप लोहाघाट में रहते हुए कुछ ही दिनों में आदि कैलाश घूमकर आ सकते हैं। या आदि कैलाश जाते समय लोहाघाट में भी कुछ समय बिता सकते हैं। टनकपुर से लोहाघाट और आगे धारचूला तक की सड़क बहुत अच्छी बनी है और अब ज्यादातर यात्री इसी मार्ग से आदि कैलाश जाते हैं।

कैसे जाएं?

दिल्ली से लोहाघाट की दूरी लगभग 400 किमी है। नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है, जो 85 किमी दूर है। दिल्ली और टनकपुर दोनों ही स्थानों से लोहाघाट के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं। टनकपुर से आप टैक्सी व शेयर्ड टैक्सी से भी लोहाघाट जा सकते हैं।

कब जाएं?

लोहाघाट का मौसम हमेशा खुशनुमा बना रहता है, इसलिए आप पूरे साल में कभी भी जा सकते हैं। गर्मियों में यहां का मौसम शीतल रहता है। मानसून में बारिश होती है, लेकिन रास्ते खुले रहते हैं और हरियाली चरम पर होती है। सर्दियों में कभी-कभार हिमपात भी हो जाता है।

कहां ठहरें?

लोहाघाट में कम और मध्यम बजट के कई होटल व गेस्ट हाउस उपल्ब्ध हैं। आप कुमाऊं मंडल विकास निगम के रेस्ट हाउस में भी ठहर सकते हैं।


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