- ‘दोहा डायमंड’ में अपनी शानदार परफॉर्मेंस के कारण चर्चा में हैं नीरज चोपड़ा। कैसे वो मैदान में खुद पर दबान नहीं आने देते, उन्हीं की जुबानी...
ओलिंपिक में मेडल जीतने से ही जिंदगी नहीं बदलती है। यह स्थायी प्रक्रिया है। जब मैंने स्कूल जाना शुरू किया, जब खेलना शुरू किया, जब नए स्कूल में गया... हर दफा जिंदगी बदली। जिंदगी बदलाव का ही नाम है। बस, यह है कि मेडल मिल जाए तो बदलाव कुछ बड़ा हो जाता है। इस मेडल से इतना हुआ कि ज्यादा लोग मुझे पहचानने लगे और खूब प्रेशर में परफॉर्म करने का कॉन्फिडेंस आया। घरेलू जिंदगी में तो रत्ती भर फर्क नहीं पड़ा। आज भी घरवाले मुझसे खेतों में काम करवाते हैं, मेहमानों के लिए चाय भी बनाता हूं और खेतों पर खाना लेकर भी जाता हूं। लोग अक्सर पूछते हैं कि क्या प्रतियोगिता का स्तर परफॉर्मेंस का स्तर तय करता है? तो मेरा उन्हें यही जवाब होता है कि जिस भी कॉम्पीटिशन में मैं हिस्सा लेता हूं, सभी में अपना बेस्ट देता हूं। मुझे नहीं लगता दुनिया में कोई भी खिलाड़ी अपने परफॉर्मेंस को कंट्रोल कर सकता है, वो बेस्ट देने के लिए ही खेलता है। नेशनल हो या कॉमनवेल्थ... या ओलिंपिक... सभी में मेरा 100 फीसद ही आप देखेंगे। किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए आपको बस प्रेशर नहीं लेना है। परीक्षा वाला दिन ही अलग होता है। कितनी भी तैयारी कर लीजिए, उस दिन का खेल ही अलग होगा। आप परिणाम मत सोचिए, केवल जान लगाकर परफॉर्म कीजिए। सब अच्छा ही होगा। जिंदगी के उतार-चढ़ाव खेल का हिस्सा हैं। अच्छी से अच्छी टीम भी किसी दिन खराब परफॉर्म कर सकती है। सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं हो सकता है। आप केवल तैयारी ही कर सकते हैं, मेहनत कर सकते हैं। जब मैं भाला फेंकने के लिए दौड़ता हूं, तो काफी एग्रेसिव होता हूं। एक गुस्सा-सा रहता है। यह पूरी तरह से मेरे काबू में होता है। खूब फोकस्ड रहता हूं। अपने एग्रेशन को कंट्रोल करने के सभी के खुद के तरीके होते हैं। मैं अपना सारा गुस्सा मैदान के लिए बचा के रखता हूं। मेरा गुस्सा वहीं ठंडा होता है। मेरे लिए सबसे ज्यादा रिलैक्सिंग होती है ट्रेनिंग। खेल के मैदान में मुझे किसी और चीज की जरूरत ही नहीं होती है। मैं खुद में रच-बस जाता हूं, मैं अपने साथ होता हूं। तमाम खराब विचारों के साथ भी अगर मैं मैदान में उतरता हूं तो वहां जाते ही सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता हूं। आप यकीन नहीं करेंगे, जब मैं किसी कॉम्पीटिशन के लिए मैदान में जाता हूं तो भले ही वहां हजारों लोग मौजूद हों, खूब शोर हो रहा हो... मुझे कुछ सुनाई नहीं देता। मैं केवल अपने खेल के साथ ही होता हूं। उसी में मैं पूरी तरह रमा होता हूं।
अपने काम को एंजॉय करें, तनाव नहीं होगा
ओलिंपिक में सभी की फिटनेस उच्च स्तर की होती है, यहां खेल निर्भर करता है आपकी मेंटल फिटनेस पर। कई खिलाड़ी प्रैक्टिस सेशन में कमाल का प्रदर्शन करते हैं लेकिन बड़े इवेंट में औसत ही परफॉर्म कर पाते हैं। ऐसा शायद इसलिए है कि आप खुद पर दवाब बनाते हैं कि मुझे यहां परफॉर्म करके ही जाना है। मैं मानता हूं कि आप अपने गेम का, काम का मजा लीजिए। आप अपने काम को एंजॉय करेंगे तो किसी तरह का परफॉर्मेंस प्रेशर महसूस नहीं होगा।
(विभिन्न इंटरव्यू में भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा)
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