मोदी मंत्रिमंडल के गठन के एक दिन बाद विभागों का बँटवारा भी हो गया। यानी मंत्रालय अलॉट हो गए। सरकार के गठन के बाद लगा था मोदी पहली बार गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री बने हैं लेकिन किसी तरह का दबाव नज़र नहीं आ रहा है लेकिन विभागों के बँटवारे के बाद तो लग रहा है यह अब तक की सबसे दबंग या ये कहें कि सबसे शक्तिशाली गठबंधन सरकार है।
सब जानते हैं - जब पहली मिली- जुली जनता सरकार बनी थी तो नित नए कैसे - कैसे झगड़े होते थे। किसी को शक्तिशाली मंत्रालय चाहिए था, किसी को एक हटे तो खुद को प्रधानमंत्री बनने की चाह थी। आख़िर आपसी झगड़ों का फ़ायदा कांग्रेस ने उठाया और सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई।
फिर दूसरी गठबंधन सरकार विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में बनी। उसमें भी अजीब तमाशे हुए। कभी चौधरी देवीलाल कोप भवन में बैठ गए। कभी मुफ़्ती सईद की बेटी को छुड़ाने के लिए आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा। बाद में राजनीतिक हल्क़ों में यह अफ़वाह भी फैली कि अपहरण के दौरान घर से टिफ़िन ज़ाया करता था। हालाँकि इसका कोई पुख़्ता सबूत तो किसी ने नहीं दिया लेकिन बयान आया किसी आधिकारिक मंच से ही था।
फिर चंद्रशेखर के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी लेकिन वहाँ भी समझौतों के सिवाय कुछ नहीं था। यह सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। बाद में इसी तरह की कमजोर सरकारें देवगौडा और गुजराल की भी रही। शुरूआत में अटलजी की सरकार को भी कई समझौते करने पड़े। उनकी सरकार एक बार तेरह दिन में और दूसरी बार तेरह महीनों में गिर गई। तीसरी बार भी अटल जी ने गठबंधन सरकार ही बनाई लेकिन वह पहली गठबंधन सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
बाद में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी। पूरे दस साल चली। दो कार्यकाल उसने पूरे किए लेकिन समझौते उसे भी बहुत करने पड़े। नरेंद्र मोदी की यह पहली सरकार है जो मिली- जुली है लेकिन अब तक लगता नहीं कि उसने कोई समझौता किया है। हाँ, पूर्ण बहुमत नहीं आने के कारण कुछ आवाज़ें ज़रूर उठने लगी है। इनमें से कुछ आवाज़ें उस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ़ से भी हैजिसे भाजपा की रीड की हड्डी कहा जाता रहा है। दस साल से चुप बैठा संघ अब अचानक परोक्ष रूप से ही सही, भाजपा को सीख देने लगा है। इस नई सीख पर कोई प्रतिक्रिया तो फ़िलहाल आने वाली नहीं है लेकिन परिणाम यह ज़रूर होगा कि कुछ और दिशाओं से भी आवाज़ें उठने लगेंगी।
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