- फल, सब्ज़ियों व अन्य खाद्यों के आकार, गंध और स्वाद की पहचान करना जीवन कौशल का अहम हिस्सा है।
- इनकी स्पष्टता स्वास्थ्य के लिए भी ज़रूरी है। छुटपन से ही इस कौशल में बच्चों को पारंगत किया जा सकता है।
यहां हम बताने वाले हैं आपको कुछ नए तरह के खेल, जिन्हें खेलने के लिए ना तो गणित का ज्ञान होना ज़रूरी है और ना ही ज़रूरी है कोई रणनीति। बस इसे खेलने के लिए चाहिए घर में मौजूद कुछ छोटी-छोटी चीज़ें और थोड़ा-सा सब्र। इन्हीं से खेलेंगे ये खेल जो आपके बच्चे की इन्द्रियों की क्षमता यानी देखने, सुनने, सूंघने, स्वाद लेने और छूने के गुण को निखार देंगे। इसलिए तो इन्हें कहते हैं सेंसरी प्ले यानी संवेदी खेल। ये तो हो गया कि आख़िर हम बात किसकी कर रहे हैं उसके बारे में, अब आपको बताते हैं कि इन खेलों को खेलना कैसे है क्योंकि जब बच्चे इन्हें खेलेंगे तभी तो मिलेंगे ढेर सारे लाभ। जैसे- उनकी याद्दाश्त ताज़ादम रहेगी, जल्दी से उलझनें सुलझाने का गुण आएगा और ध्यान लगाने के साथ ही होगा बढ़िया बौद्धिक विकास।
देखा तो जाना कौन-सा है रंग/आकार
इस खेल में बच्चा समझेगा कि आख़िर कैसा दिखता है आम, संतरा या नींबू। इसके लिए कुछ फल और सब्ज़ियां ले आएं। ये रंग-बिरंगी होंगी तो बच्चे को ज़्यादा मज़ा आएगा। अब बच्चे को बताएं कि संतरा केसरिया और नींबू पीले रंग का है, जो बड़ा है वो संतरा है और छोटा वाला है नींबू। इसके बाद शिमला मिर्च और शलजम दिखाएं। पालक के पत्ते भी दे दें। अब इनके रंग और आकार बताएं जिससे बच्चे जान पाएं पीले, हरे और नारंगी जैसे रंगों का पेच। साथ ही पता चल जाए कि क्या है तिकड़म गोल-चौड़े और छोटे-बड़े की।
सूंघने में जो आए अजब-सी गंध
करेले की गंध कड़वी होती है वहीं आम में भरी होती है सुगंध की मिठास। इसी सुगंध के अनोखे-से गुण से पहचान कराने के लिए खेलेंगे सुगंध का खेल। इसके लिए कुछ फल और सब्ज़ियां ले लें। जैसे- मूली, आम, संतरा, नींबू, पुदीना आदि। इन्हें बच्चे को एक-एक करके सूंघने दें। जब वे इन्हें सूंघें तो उनके साथ इत्मीनान से पेश आएं और सुगंध समझाएं। इस खेल में रंग-बिरंगी टॉफियां/कैंडीज़ भी शामिल कर सकते हैं।
एक खुरदुरा तो दूसरा है कोमल
खेल के तीसरे पड़ाव में बच्चे रूबरू होंगे बनावटों से। इसके लिए बहुत ताम-झाम नहीं करने हैं। घर में और घर के आसपास मौजूद अलग-अलग वस्तुओं जैसे- रुई, लकड़ी, पेड़, घास, अनाज, बर्तन, फर्श और खाद्यों को शामिल कर लेना है। फिर सिलसिला शुरू करना है इन्हें छूकर पता करने का कि किसकी बनावट कैसी है और छूने में कैसा अनुभव हो रहा है। जहां बच्चों को पौधों के फूल कोमल और लुभावने लगेंगे वहीं पेड़ का खुरदुरा तना बहुत अजीब लगेगा। इसलिए उनके हर अजीबो-गरीब सवाल के जवाब देने के लिए भी तैयार रहें।
कहीं झनझन तो कहीं खटर-पटर
सुना होगा ना कि जहां चार बर्तन होते हैं वहां खटर-पटर होती ही है। पायल की झनकार दिल को भा जाती है। खिलौने वाले बंदर का डम-डम करके डमरू बजाना चेहरे पर मुस्कान ला देता है, साइकल की घंटी अलग समां बांध देती है। वहीं गाड़ी का हॉर्न मूड ख़राब कर देता है। पर जब हर आवाज़ दो चीज़ों के टकराने से होती है तो भाव हर बार अलग कैसे? ये जानना उनको रोमांचक लगेगा। इसके लिए घर का कुछ सामान लें उन्हें बारी-बारी से बजाएं और बच्चे को हर आवाज़ समझने दें।
खट्टा लगा या मीठा था स्वाद
बचपन की रंग-बिरंगी खट्टी-मीठी गोलियां याद हैं ना। कितना अचरज से भर जाते थे हम उनके स्वाद जानकर कि एक ही डिब्बे से निकलने वाली ये गोलियां अलग-अलग रंग और स्वाद की कैसे हो सकती हैं। उस समय मन में आए इन्हीं सवालों के जवाब अपने बच्चे को खट्टी-मीठी गोलियों की भांति ही देने हैं। इसके अलावा जब उन्हें कुछ खाने को दें तो भी उसका स्वाद पूछें कि उन्हें ये कैसा लगा।
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