दुनियाभर में सबसे ज़्यादा सायबर अपराध वाले देशों में हम भी शामिल हैं। परंतु इससे घबराने और तनाव लेने के बजाय ख़ुद को बचाना कैसे है, हमें उस पर ध्यान देना है। इसी पर आधारित है ये लेख।
सरिता को कुछ कपड़ों की ख़रीदारी करनी थी। कपड़े ख़रीदने के बाद जब सरिता पेमेंट करने के लिए काउंटर पर पहुंची और बिलिंग कराई तो वहां उपस्थित कर्मचारी ने उससे उसका मोबाइल नंबर पूछा। थोड़ा घबराते हुए उसने अपना नंबर बताया। फिर उस कर्मचारी ने कहा कि मैडम आपके मोबाइल पर एक ओटीपी आएगा, वो बता दीजिए। सरिता ने पूछा कि ओटीपी क्यों आएगा और शॉपिंग में ओटीपी की क्या ज़रूरत? मैं आपको ओटीपी नहीं दूंगी। तब उस व्यक्ति ने समझाया कि ‘मैडम आप पहली बार यहां शॉपिंग कर रही हैं इसलिए आपका नंबर हमारी कंपनी में रजिस्टर्ड नहीं है। बिल आपके मोबाइल में आएगा जिसके लिए मोबाइल नंबर की आवश्यकता होती है। बिल के लिए एक लिंक आएगा जिसे क्लिक करके आप अपना बिल देख सकती हैं।’ सब कुछ समझने के बाद सरिता ने ओटीपी बताया। परंतु वह अभी यही सोच रही थी कि कहीं उसके साथ कोई स्कैम तो नहीं हो रहा? सरिता जैसे कई लोग हैं जिन्हें ऑनलाइन भुगतान, क्यूआर कोड, ओटीपी और मैसेज पर आए हर लिंक से डर लगता है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि लगातार बढ़ते सायबर अपराधों ने लोगों के मन में डर पैदा कर दिया है जो उन्हें मानसिक और सामाजिक रूप से प्रभावित कर रहा है। - शोधकर्ताओं की अंतरराष्ट्रीय टीम (सायबर क्राइम विशेषज्ञ) द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक़ भारत सायबर अपराध के मामलों में 10वें स्थान पर है। इसमें अग्रिम शुल्क भुगतान (एडवांस फीस पेमेंट) से जुड़ी धोखाधड़ी को सबसे आम अपराध बताया गया है। - आरबीआई के अनुसार कार्ड और इंटरनेट द्वारा किए भुगतान से जुड़े फ्रॉड की संख्या वित्त वर्ष 2024 में 29082 तक पहुंच गई है। सामाजिक रिश्तों और मस्तिष्क पर पड़ रहा है असर
सायबर अपराध से जुड़े मामले रोज़ सुनने में आते हैं। बढ़ते सायबर अपराध का डर लोगों के मन और व्यवहार को प्रभावित कर रहा है।
अनजान नंबर से मैसेज या कॉल आने पर लोग घबरा जाते हैं। डरकर फोन नहीं उठाते या ब्लॉक कर देते हैं। उन्हें यह सोचकर तनाव होने लगता है कि उनका नंबर स्कैमर्स को कैसे मिला, कहीं उनका फोन हैक तो नहीं हो गया। वो बार-बार खाते की रकम जांचते हैं।
ऑनलाइन भुगतान करने से डरते हैं, इसलिए नक़द भुगतान करना ज़्यादा सुरक्षित मानते हैं। उन्हें लगता है कि ऑनलाइन भुगतान किया तो कोई ठग खाता ख़ाली कर देगा।
असुरक्षा और कमज़ोरी की भावना बढ़ रही है। सायबर अपराध के डर से लोगों के आपसी व्यवहार प्रभावित हो रहे हैं। हर जाने-अनजाने शख़्स को शक की नज़रों से देख रहे हैं।
छल के डर से कुछ लोग यूपीआई और इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल छोड़ने का विचार करते हैं।
जानकारी और समझदारी से बचा जा सकता है
दो बैंक खाते रखें। एक खाते में कम राशि रखें जिसका इस्तेमाल केवल ऑनलाइन पेमेंट के लिए करें। इस खाते से यूपीआई इस्तेमाल करना है तो इसे दूसरे नंबर से लिंक करें और सिम को भी दूसरे मोबाइल में इस्तेमाल करें। वहीं दूसरे खाते को ऑनलाइन भुगतान के लिए इस्तेमाल ना करें।
पासवर्ड और पिन मज़बूत रखें। सायबर हमले का सबसे बड़ा कारण है कमज़ोर पासवर्ड या पिन डालना। अधिकतर लोग ऐसे पासवर्ड या पिन बनाते हैं जो उन्हें याद रहें। परंतु इनको हैकर्स को तोड़ना और भी आसान हो जाता है।
ऑनलाइन फ्रॉड होने पर तुरंत यूपीआई आईडी या बैंक खाता जिस नंबर से लिंक है, उस नंबर से फौरन 1930 पर कॉल करें। इस पर आपके साथ हुए फ्रॉड से संबंधित सारी जानकारी मांगी जाएगी।
कोई भी एप या फाइल्स अविश्वसनीय स्रोतों से डाउनलोड करने से बचें। ऐसा कोई भी लेंडिंग एप डाउनलोड ना करें जहां .apk इंस्टॉलेशन फाइल मैसेंजर पर साझा की गई हो। आजकल सोशल मीडिया पर आकर्षक सामान दिखाकर ख़रीदने का लिंक भी पोस्ट करते हैं, उन पर क्लिक करने से बचें। इसी तरह फ्री टॉक टाइम या डिवाइस मिलने के दावे वाले लिंक भी होते हैं। वेबसाइट ‘https’ से शुरू होनी चाहिए। अगर वेबसाइट ‘http’ से शुरू होती है तो यह सुरक्षित नहीं है। अगर कोई दुकानदार आपको मैसेज पर लिंक भेजता है तो उसे ध्यान से पढ़ें, उसके बाद उस पर क्लिक करें।
किसी दुकान पर क्यूआर कोड स्कैन करने के बाद उसके खाताधारक का नाम आता है। अगर उस पर दुकान का नाम आ रहा है तो आप उस पर भुगतान कर सकते हैं। अगर किसी व्यक्ति का नाम आता है तो एक बार दुकानदार से जांच करा लें कि यह कोड सही है या नहीं।
आरटीओ, बिजली या अन्य सरकारी काम हमेशा दिन में होते हैं। अगर कोई एजेंट आपका काम करने के लिए शाम को 6 बजे के बाद ओटीपी, मांगता है या भुगतान करने के लिए कहता है, तो उसे मना कर दें।
आजकल सभी बिल मोबाइल पर ही आते हैं। अगर कोई बड़ी कंपनी या ब्रान्ड ख़रीदारी के बाद ओटीपी और फीडबैक के लिए लिंक भेजती है तब भी आप उस मैसेज को अच्छी तरह से पढ़ें। मैसेज पर कंपनी का नाम होगा।
लिफ़ाफे या पार्सल आने पर ख़ाली पैकेट फेंकने से पहले उस पर से अपना मोबाइल नंबर मिटा दें। फोन पर किसी को भी अपना आधार या खाता नंबर ना बताएं।
रोज़ सायबर अपराध से जुड़े मामले सुनने में आते हैं। उनसे घबराने के बजाय पीड़ितों ने कहां ग़लती की और विशेषज्ञ ऐसे मामलों में क्या सलाह देते हैं, यह पढ़कर सतर्क रहें।
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