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सहजानंद स्वामी का मानना था कि धर्म से समाज सुधार संभव


अहमदाबाद स्थित स्वामीनारायण मंदिर। यह स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा निर्मित पहला मंदिर था। निर्माण 1822 में किया गया था। - Dainik Bhaskar
अहमदाबाद स्थित स्वामीनारायण मंदिर। यह स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा निर्मित पहला मंदिर था। निर्माण 1822 में किया गया था।

राजा राममोहन रॉय और सहजानंद स्वामी दोनों 19वीं सदी के हिंदू सुधारवादी थे। लेकिन अधिकांश भारतीय राममोहन रॉय और 19वीं सदी में उनके ब्रह्म समाज द्वारा हिंदू धर्म में लाए गए सुधारों के बारे में ही जानते हैं। सहजानंद स्वामी और उनके स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा किए गए सुधारों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह संभवतः इसलिए क्योंकि सहजानंद स्वामी भ्रमणकारी तपस्वी थे और उन्होंने मंदिरों के पारंपरिक प्रतिरूप में सुधार किया। ब्रह्म समाज ने बंगाल के शिक्षित अभिजात वर्ग को और स्वामीनारायण संप्रदाय ने ग्रामीण गुजरात के पटेल समुदाय को प्रभावित किया। ब्रह्म समाज का सबसे अधिक प्रभाव भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के शुरुआती चरणों में हुआ। उस समय मूर्तिपूजा के बजाय गूढ़ दर्शनशास्त्र पसंद करने वाले लोग उसकी ओर खींचे चले आए। दूसरी ओर विश्वभर में बनाए गए भव्य स्वामीनारायण मंदिरों से कई लोग परिचित हैं। इन मंदिरों के माध्यम से विदेशी हिंदू अपनी संस्कृति से जुड़े रहे हैं। पारंपरिक मंदिरों के विपरीत इन मंदिरों का स्वामीनारायण समुदाय के साथ निकट संबंध है। लोग इन्हें न केवल अपना समय दान देते हैं, बल्कि उनकी आर्थिक सहायता भी करते हैं। मंदिर इस दान से समाज सेवा करते हैं। इसलिए यह कोई अचरज की बात नहीं कि स्वामीनारायण समुदाय विस्तृत हिंदुत्व परिवार का महत्वपूर्ण भाग है। राम जन्मभूमि मंदिर को ध्यान से देखने पर हम समझ जाएंगे कि उसकी वास्तुकला स्वामीनारायण मंदिरों की वास्तुकला से प्रभावित है। सहजानंद स्वामी ने शिक्षक, साधु और प्रशासकों की वंशावली स्थापित की थी। इस वंशावली को स्वामी के संस्कृत लेखों और गुजराती प्रवचनों से आज भी दिशा मिल रही है। सहजानंद स्वामी मानते थे कि धर्म से समाज सुधार किया जा सकता है। उन्होंने ग्राम देवियों को रक्त बलि और मदिरा अर्पित करने की पारंपरिक प्रथाओं का विरोध किया। भक्तिकाल में पारंपरिक रूप से माधुर्य रस प्रमुख था। लेकिन सहजानंद स्वामी ने भक्ति के तपस्वी रूप को महत्व दिया। इसलिए स्वामीनारायण संप्रदाय में आज तक ब्रह्मचारी साधुओं का वर्चस्व है। उन्होंने महिलाओं के शिक्षण को प्रधानता दी और वे बालिका भ्रूण हत्या तथा दहेज के विरुद्ध थे। उन्होंने हिंदू धर्म में जातिवाद को सुधारने का प्रयास भी किया। स्वामीनारायण संप्रदाय का दर्शनशास्त्र भागवत पुराण के माध्यम से रामानुज से प्रभावित वेदांत के भक्ति रूप से जुड़ा है, न कि शंकराचार्य के निराकार बुद्धिवाद से। इस प्रकार स्वामीनारायण संप्रदाय मूलतः वैष्णव है। वल्लभाचार्य का पुष्टिमार्ग संप्रदाय गुजरात का दूसरा वैष्णव समुदाय है। राजस्थान में उदयपुर के निकट श्रीनाथजी का नाथद्वारा मंदिर इस संप्रदाय का मुख्य तीर्थस्थल है। यह संप्रदाय देवता को हवेली नामक गुंबज रहित मंदिरों में प्रतिष्ठापित करता है। दूसरी ओर स्वामीनारायण मंदिरों के भव्य शिखर होते हैं। पुष्टिमार्ग संप्रदाय के मंदिरों में गुरु की प्रतिमा को नर-नारायण, कृष्ण और राम जैसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के साथ रखा जाता है, यह मानकर कि गुरु परमात्मा के रूप हैं। हवेलियों में देवी के भी मात्र प्रतीक होते हैं। दूसरी ओर स्वामीनारायण मंदिरों में राधा, सीता और लक्ष्मी की प्रतिमाएं होती हैं। 19वीं सदी में मुग़ल और मराठा शासनों का अंत हुआ और अंग्रेज़ों का शासन शुरू हुआ। उन्होंने दमनकारी कर लगाए। इन करों से बचने के लिए लोग सूरत और अहमदाबाद में स्थापित नए कारखानों में काम करने लगे। 19वीं सदी में कई गुजराती पूर्वी अफ़्रीका चले गए। 1970 के दशक में इदी अमीन जैसे तानाशाहों के कारण जब उन्हें अफ़्रीका से पलायन करना पड़ा, तब वे यूरोप और अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने अपनी संस्कृति (अपनी भाषा, खाद्य संस्कृति, आस्था और प्रथाओं) को बनाए रखा। पिछले 50 वर्षों में स्वामीनारायण संप्रदाय ने इन समुदायों की धार्मिक और सांस्कृतिक मदद की है। विश्वभर के नेता इन भव्य मंदिरों में गए हैं, जो इस समुदाय की समृद्धि और प्रभाव का संकेत है। इससे विदेश में रहने वाले ये समुदाय गर्व से अपने आप को हिंदू कह सकते हैं।

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