मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में टॉप करने वाले छात्रों के लिए एमबीबीएस में 5 फीसदी सीट आरक्षित रखे जाने का फैसला लिया था, लेकिन जब सरकारी स्कूलों के कुछ छात्रों ने एडमिशन मांगा तो मेडिकल एजुकेशन विभाग ने उन्हें इसका लाभ नहीं दिया। छात्रों ने हाई कोर्ट का रुख किया तो वहां भी उनके खिलाफ फैसला आया। फैसले के खिलाफ पीड़ित छात्र सुप्रीम कोर्ट गए।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। उन्होंने संचालक मेडिकल एजुकेशन को आदेश दिए कि याचिकाकर्ता छात्रों के लिए सीट न केवल रिजर्व रखी जाए बल्कि अच्छे कॉलेजों में एडमिशन भी दिलाया जाए।
अधिवक्ता अविरल विकास खरे के मुताबिक 8 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट आदेश के खिलाफ एसएलपी दायर की थी। ओबीसी वर्ग की एक छात्रा को नीट में अच्छे अंक प्राप्त हुए।
ओबीसी के छात्र जनरल से ज्यादा अंक लाए पर एडमिशन नहीं मिला
ओबीसी की छात्रा ने 5 फीसदी आरक्षण की योजना के तहत जनरल कैटेगरी में एडमिशन के लिए आवेदन किया था। उसका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि छात्रा ने ओबीसी कैटेगरी में प्रयास नहीं किए। जबकि उसके अंक इतने थे कि जनरल में ही एडमिशन हो सकता था।
छात्रा सहित अन्य को ज्यादा अंक होने के बावजूद इस कोटे में लाभ नहीं मिला। उधर, ओबीसी की सीट भी फुल हो गई। अधिवक्ता खरे ने छात्रों की एसएलपी तैयार करवाई। सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकारी स्कूलों के टॉपर की योजना में गलत दिशा में काम हो रहा है।
होना यह चाहिए कि अंकों के हिसाब से इस कोटे के तहत क्लेम करने वाले छात्रों की मैरिट देखी जाए। उनके अंक जनरल कैटेगरी के बराबर हैं तो उन्हें उसी कैटेगरी के तहत एडमिशन दिया जाना चाहिए। उसके बाद ओबीसी या अन्य कैटेगरी में जाना चाहिए।
प्रदेशभर के पीड़ित छात्रों ने प्रिसिंपल बेंच, जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ में भी याचिका लगाई थी। वहां से राहत नहीं मिलने पर शीर्ष अदालत का रुख किया था। शीर्ष अदालत ने 2024-25 के शैक्षणिक सत्र में ही छात्रों के लिए सीट रिजर्व रखने के आदेश दिए हैं। सरकारी स्कूल की अनारक्षित श्रेणी में छात्रों को प्रवेश दिया जाएगा।
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