डर बांध देता है, प्रेम स्वतंत्र छोड़ता है
डर वह ऊर्जा है जो सोच को संकुचित करती है, अंतर्मुखी बनाती है। प्रेम बहिर्मुखी बनाता है, स्थिरता देता है। डर हमें कसता है, प्रेम स्वतंत्र छोड़ता है। डर मुट्ठी में बांधता है, प्रेम रास्ते खोलता है। डर जलाता है, प्रेम ठंडक देता है। डर आक्रमण करता है, प्रेम सुधार के अवसर देता है। इनमें से किसे चुनें, यह अधिकार आपका है।
अपने काम को बेहतरी की तरफ कैसे ले जाएं विचार करें कि आपका काम आपको कहां ले जा सकता है? लोग प्रगति नहीं करते, जबकि ऐसा कोई काम नहीं जिसमें प्रगति नहीं हो सकती है। हर महान व्यवसाय पहले छोटा ही था। लोग भावी मैनेजर्स के रूप में ऐसे उम्मीदवार चाहते हैं, जो हर काम जानते हों, जिनके पास जमीनी अनुभव हो। काम करके हासिल किया ज्ञान महत्व रखता है।
बहस से मानसिकता नहीं बदली जा सकती लोग रोज बहस करते हैं। वे काम सौंपने पर बहस करते हैं, उसे करने के तरीके पर बहस करते हैं। राजनीति और कंपनी के मामलों में बहस करते हैं और कहां खाना खाएं इस पर भी बहस करते हैं। बड़े और छोटे, दोनों तरह के मुद्दों पर बहस करते हैं। लेकिन बहस में जीतते नहीं हैं। बहस करने से आप कभी किसी की मानसिकता नहीं बदल सकते।
जो खतरा दिखाई न देता हो, उसकी आशंका से कभी न घबराएं डर पर विजय पाने के लिए हमें सबसे पहले तो यह पता लगाना चाहिए कि हम किस चीज से डरते हैं। यह हमेशा कोई ऐसी चीज होती है, जो अब तक हुई ही नहीं है। इसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता है। मुश्किल एक ऐसी काल्पनिक चीज है, जिसके बारे में हम सोचते हैं और उसकी आशंका से घबरा उठते हैं। संतुलित मस्तिष्क वाले लोग निडर होते हैं। वे खतरे के विचार से हारना पसंद नहीं करते, बल्कि अपनी शारीरिक शक्तियों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। चिंता कभी तर्कसंगत नहीं होती है।
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