भगवान गणेश को देवताओं में प्रथमपूज्य माना जाता है। कोई भी शुभ काम हो, बिना उनकी पूजा के वह पूरा नहीं होता है। मान्यता है कि भाद्रपद की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन गणेश चतुर्थी त्योहार मनाया जाता है। अब ये तो आप जानते ही होंगे कि गणेश जी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं, लेकिन क्या आपको ये पता है कि उनका विवाह किससे और कैसे हुआ था। दरअसल, भगवान गणेश का सिर हाथी का और एक दांत टूटा था, इसलिए कहा जाता है कि उनका विवाह नहीं हो पा रहा था। पौराणिक कहानियों के मुताबिक, कोई भी कन्या उनसे विवाह करने को तैयार ही नहीं थी।
अपना विवाह न होता देख भगवान गणेश उदास रहने लगे। वह जब भी किसी दूसरे देवता के विवाह में जाते तो उन्हें बड़ा दुख होता था, उनके मन को ठेस पहुंचती थी। कहा जाता है कि इस वजह से बाद में गणेश जी ने दूसरे देवताओं के विवाह में भी विघ्न डालना शुरू कर दिया और इस काम में उनका वाहन मूषक उनकी सहायता करता था
गणेश जी का वाहन मूषक उनके आदेश पर देवताओं के विवाह मंडप को नष्ट कर देता था, जिससे उनके विवाह में अड़चनें पैदा हो जाती थीं। गणेश जी और मूषक की इस मिलीभगत से सारे देवता परेशान हो गए और अपनी समस्या लेकर गणेश जी के पिता भगवान शिव के पास पहुंचे, लेकिन वहां भी उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ। हालांकि भगवान शिव और देवी पार्वती ने देवताओं से इतना जरूर कहा कि इस समस्या का समाधान ब्रह्मा जी के पास है।
अब सारे देवता अपनी समस्या लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। उस समय ब्रह्मा जी योग में लीन थे। हालांकि देवताओं की प्रार्थना पर उनकी समस्या के समाधान के लिए ब्रह्मा जी के योग से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट हुईं। इस वजह से दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री कहलाईं। अब अपनी दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्मा जी गणेश जी के पास पहुंचे और उनसे कहा कि आपको मेरी दोनों पुत्रियों को शिक्षा देनी होगी। इसके लिए गणेश जी तैयार हो गए। दोनों की शिक्षा प्रारंभ हो गई। इस दौरान जब भी मूषक किसी देवता के विवाह की सूचना देने गणेश जी के पास आता तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देती थीं। इससे देवताओं का विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण होने लगा।
एक दिन गणेश जी को सारी बातें पता चल गईं कि ऋद्धि और सिद्धि की वजह से देवताओं का विवाह बिना किसी रुकावट के सम्पूर्ण हो रहा है। इससे गणेश जी काफी क्रोधित हो गए। हालांकि उसी समय ब्रह्मा जी वहां प्रकट हुए और गणेश जी से कहने लगे कि मुझे अपनी दोनों पुत्रियों ऋद्धि और सिद्धि के विवाह के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है, आप ही इनसे विवाह कर लें। इस तरह भगवान गणेश का विवाह धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ। कहा जाता है कि उनसे दो पुत्र भी हुए, जिनका नाम शुभ और लाभ है।
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