पिछले सप्ताह हमने जाना था कि कुरियर कंपनियों से कोई पार्सल गुम हो जाता है या कोई टूट-फूट हो जाती है या समय पर डिलीवरी नहीं हो पाती है तो उनकी देयता क्या होगी। आज हम देखेंगे कि भारतीय पोस्ट ऑफिस (इंडिया पोस्ट) की क्या जवाबदेही या देयता होती है और इसके उपभोक्ताओं को क्या अधिकार हासिल है। गौरतलब है कि इंडिया पोस्ट दुनिया का सबसे व्यापक डाक नेटवर्क है।
क्या कहता है डाकघर अधिनियम?
इंडिया पोस्ट भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 द्वारा शासित था। इस अधिनियम की धारा 6 सरकार और डाकघर के अधिकारियों को किसी भी "नुकसान, गलत डिलीवरी, देरी या क्षति के लिए देयता’ को सीमित करती है, बशर्ते अधिकारियों ने "धोखाधड़ीवश’ या "जानबूझकर’ ऐसा न किया हो। देयता सरकार द्वारा तय की गई राशि तक सीमित थी। भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 को डाकघर अधिनियम, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। डाकघर अधिनियम, 2023 की धारा 10 में पूर्ववर्ती से थोड़ी अलग भाषा का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसका मूल वही है।
पैकेज खोने पर मुआवजा साल 2015 में मोनू झालानी ने स्पीड पोस्ट के जरिए राजस्थान के बांदीकुई से दिल्ली एक मोबाइल फोन भेजा था। लेकिन वह कभी डिलीवर नहीं हो पाया और झालानी ने उपभोक्ता फोरम की ओर रुख किया। इस पर जिला फोरम ने इंडिया पोस्ट को मोबाइल की कीमत और मुआवजा देने का निर्देश दिया। लेकिन फिर इंडिया पोस्ट इस मामले को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ले गया। आयोग के समक्ष इंडिया पोस्ट ने दावा किया कि चूंकि मोनू झालानी ने पैकेज के भीतर मौजूद चीज के बारे में नहीं बताया था और इसलिए इंडिया पोस्ट जिम्मेदार नहीं है।
इसने यह भी कहा कि डाकघर अधिनियम, 1898 के प्रावधानों और नियमों के अनुसार डाकघर की जिम्मेदारी सीमित है। नियम के मुताबिक, "घरेलू स्पीड पोस्ट आइटम के खो जाने या उसकी सामग्री के खो जाने या सामग्री को नुकसान पहुंचने की स्थिति में मुआवजा स्पीड पोस्ट शुल्क की दोगुनी राशि या 1,000 रुपए, जो भी कम हो, दिया जाएगा।’ डाकघर ने दावा किया कि स्पीड चार्ज की दोगुनी राशि उपभोक्ता को दी जा चुकी है और कुछ भी भुगतान करने की देयता नहीं बची है। हालांकि, एनसीआरडीसी ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि मोबाइल वाला पैकेज खोना डाकघर की चूक है और वह क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है। एनसीडीआरसी ने डाकघर को इस तरह के छोटे मामले को राष्ट्रीय आयोग तक लाने के लिए फटकार भी लगाई और जिला फोरम के निर्णय को बरकरार रखा।
डाककर को जांच करनी होगी मोनू झालानी मामले को एक अपवाद माना गया है। अधिकांश अन्य मामलों में डाकघर की सीमित देयता ही दिखाई देती है। हालांकि गजानंद शर्मा मामले में यह माना गया कि डाकघर जानबूझकर की गई चूक के मामलों को वैधानिक संरक्षण की आड़ में छिपा नहीं सकता। एनसीडीआरसी के अनुसार इस बात की जांच की जरूरत है कि क्या गलत डिलीवरी या डिलीवरी में देरी अथवा क्षति संबंधित अधिकारियों की ओर से "धोखाधड़ी’ की वजह से हुई या "जानबूझकर’ की गई। ऐसे मामलों में जांच करके जवाबदेही तय करना आवश्यक है, ताकि भविष्य के लिए सुधार और अपने उपभोक्ताओं को होने वाले नुकसान तथा क्षति के प्रति सजग हुआ जा सके। अगर ऐसी जांच पूरी नहीं होती है तो डाकघर को सीमित देयता का लाभ नहीं मिल सकता है। अगर धोखाधड़ी या जानबूझकर चूक होती है तो डाकघर और उसके अधिकारी उत्तरदायी हैं। अगर डाकघर दावा करता है कि कोई धोखाधड़ी या जानबूझकर चूक नहीं हुई है, तो उसे यह दिखाने के लिए जांच करनी होगी।
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