मनुष्य को संसार में सबसे बड़ा डर मृत्यु का होता है, लेकिन दूसरों की मृत्यु को देखकर भी हम कोई सीख नहीं लेते। मृत्यु तो जीवन का शाश्वत सत्य है, मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता। जिसकी कोई गारंटी नहीं, उसका नाम जीवन और जिसकी शत-प्रतिशत गारंटी उसका नाम मृत्यु। संसार का चक्र बड़ा अजीब है। हममें से कोई भी ऐसा नहीं होगा, जिसने कोई मृत्यु न देखी हो, लेकिन मृत्यु के प्रति हमारा वैराग्य केवल श्मशान घाट तक ही बना रहता है। विडंबना यह है कि 83 लाख 99 हजार 999 जन्मों के बाद हमें यह दुर्लभ मनुष्य जीवन मिला है फिर भी हम भगवान का नाम लेने में कंजूसी कर रहे हैं। मृत्यु को महोत्सव बनाने की जरूरत है। जब तक परमात्मा का प्रेम हमारे जीवन में नहीं उतरेगा, तब तक मृत्यु को महोत्सव में नहीं बदला जा सकता।
साध्वी कृष्णानंद ने सुनाए भजन
श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने बुधवार को गीता भवन सत्संग सभागृह में गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट एवं गोयल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में तीसरे दिन उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। संगीतमय कथा के दौरान साध्वी कृष्णानंद द्वारा प्रस्तुत भजन भी भक्तों को आल्हादित बनाए हुए हैं। कथा 22 दिसंबर तक प्रतिदिन अपरान्ह 4 से सायं 7 बजे तक होगी। कथा शुभारंभ के पूर्व व्यासपीठ का पूजन आयोजन समिति की ओर से प्रेमचंद –कनकलता गोयल, विजय-कृष्णा गोयल, आनंद –निधि गोयल, आशीष-नम्रता गोयल आदि ने किया। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गीता भवन आ रहे हैं। कथा के दौरान गुरूवार, 19 दिसंबर को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इस अवसर पर माखन-मिश्री की मटकियों और रंगीन गुब्बारों से कथा स्थल को श्रृंगारित कर पंजीरी एवं सूखे मेवे का प्रसाद वितरण किया जाएगा।
बड़ा अजीब है संसार का चक्र
महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि संसार का चक्र बड़ा अजीब है। कीड़े को खाने के लिए मेंढक, मेंढक को लपकने के लिए सांप, सांप को पकड़ने के लिए मोर, मोर को झपटने के लिए शेर औऱ शेर को पकड़ने के लिए बहेलिया पीछे लगे हुए हैं। यह संसार का सत्य है। हर किसी के पीछे मौत लगी हुई है, लेकिन वह इन सबसे बेखबर होकर अपने लक्ष्य की ओर भटक रहा है। मनुष्य का जीवन उस घड़े की तरह है, जिसमें छिद्र है और श्वांस रूपी पानी भरा है। यह एक-एक बूंदकर घट रहा है अर्थात हमारी आयु कम होती जा रही है। बचपन से यौवन, यौवन से प्रौढ़ावस्था और प्रौढ़ से वृद्धावस्था में पहुंचने का समय पता ही नहीं चलता। मनुष्य को मृत्यु से डर इसलिए भी लगता है कि वह वहां अकेला जाएगा। जीते जी हमने एकांत में रहने का अभ्यास नहीं किया। एकांत मिला तो उसे मोबाइल में गंवा दिया। फिर, जितना अब तक कमाया हुआ है, वह सब यहीं छूट जाएगा, इसका भी डर और भय मनुष्य को सताता है। इस डर को दूर करने के लिए जीवन काल में दान अवश्य करना चाहिए। मृत्यु तभी महोत्सव बनेगी, जब परमात्मा का प्रेम हमारे जीवन में उतरेगा।
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