परम्परागत खेती अब पुरानी बात हो गई है। अब दौर आधुनिक तरीकों से एडवांस फार्मिंग का है। उन्नत खेती से उन्नति कैसे पाई जाती है, ये सफलता मंत्र कोई किसान श्री शरद नागरे से पूछे।
छिंदवाड़ा जिले के बिछुआ ब्लॉक के झामटा गांव के शरद नागरे पहले पारम्परिक खेती करते थे। सीमित संसाधनों और कम आमदनी में वे आजीविका उपार्जन के लिये संघर्ष कर रहे थे। पर वही शरद आज आधुनिक कृषि तकनीकों की मदद से न केवल लखपति बन गए हैं, बल्कि अपने गांव के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन चुके हैं। अपने दृढ़ संकल्प और आधुनिक सोच से सफलता पाकर वे अपने क्षेत्र के एक 'फार्मिंग आइककान' बन गये हैं।
शरद नागरे शुरू में निहायत ही पुराने तरीकों से खेती करते थे। प्लाऊ, हार्वेस्टर, ट्रैक्टर, आधुनिक यंत्र और नवीनतम तकनीकों से वे हमेशा दूर ही रहे। इससे उन्हें बेहद कम आमदनी होती थी। उनकी यह स्थिति उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन से बदलनी शुरू हुई। विभाग ने उन्हें टमाटर, बैंगन, लहसुन, खीरा और लौकी जैसी उद्यानिकी फसलों की खेती के फायदे बताये और आधुनिक कृषि तकनीकों का व्यवहारिक प्रशिक्षण भी दिया।
तकनीकी सलाह अपनाते हुए शरद ने अपने 4 हेक्टेयर खेत में उद्यानिकी फसलों की खेती शुरू की। नई तकनीकों को अपनाने में उन्हें शुरू में कठिनाइयां भी आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने नई सिंचाई तकनीक, उन्नत किस्म के बीज, खाद और मल्चिंग विधियों का उपयोग शुरू किया। उद्यानिकी विभाग ने मल्चिंग सुविधा के लिए उन्हें 16 हजार रुपये का अनुदान भी दिया। उनकी मेहनत रंग लाई। टमाटर, बैंगन और अन्य उद्यानिकी फसलों की अच्छी पैदावार होने लगी और बाजार में उनके ताजा उत्पादों को अच्छा दाम भी मिलने लगा। इससे उनकी माली हालत सुधरने लगी। शरद नागरे की खेती से सालाना आय 10 लाख से बढ़कर 15 लाख रुपये तक पहुंच गई। इस आय से उन्होंने न केवल अपनी जरूरतें पूरी कीं, बल्कि अपने बच्चों की उच्च शिक्षा, पक्के घर का निर्माण कर आधुनिक कृषि उपकरणों की खरीदी भी की।
अब शरद नागरे अपने गांव में एक सम्मानित व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रेरणा से गांव के अन्य किसानों ने भी आधुनिक खेती अपनाना शुरू कर दी है। आधुनिक खेती अपनाने से अब गांव के दूसरे किसानों का जीवन स्तर भी तेजी सुधर रहा है।
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