वन विभाग की नर्सरी में अब नीम, पीपल, आम, जाम, सागौन, बबूल, बांस के पौधे ही नहीं तैयार नहीं हो रहे बल्कि वह पौधे भी विकसित किए जा रहे हैं, जिनकी औषधि के रूप में खूब मांग है। अनुसंधान व विस्तार केंद्र की नर्सरी में पर्यावरण प्रेमी ने इंसुलिन की मात्रा संतुलित रखने वाला एक पौधा दान दिया था।
कर्मचारियों ने इस पौधे की कलम, पौधे में लगने वाली गांठ के जरिए 800 पौधे तैयार कर लिए हैं। इन 800 पौधों से अब 8 हजार से ज्यादा पौधे तैयार कर लिए जाएंगे।
बारिश के सीजन में इन पौधों को बेचा जाएगा। इनकी कीमत भी नाममात्र की ही रहेगी। बड़गोंदा स्थित नर्सरी के अधीक्षक सुनील शर्मा के मुताबिक कुछ समय पहले एक पौधा इस्टीविया (इंसुलिन नियंत्रित करने वाला) का मिला था। इस पौधे में गांठ भी होती है। कलम की तकनीक से भी और पौधे लगाने शुरू किए थे।
प्रयोग सफल रहा तो इनकी संख्या 800 से अधिक हो गई। अभी यह 800 पौधे बेचे नहीं जाएंगे। इन पौधों से बारिश तक इनकी संख्या 8 हजार से अधिक कर ली जाएगी। इसी तरह पथरी में काम आने वाला पत्थरचट्टे का पौधा भी तैयार किया जा रहा है। इसके पौधे भी 200 के करीब हैं। इनकी संख्या भी बढ़ाई जाएगी।
लोगों को बता रहे पौधों का महत्व
रेसीडेंसी कोठी स्थित नर्सरी में 50 से अधिक तरह के पौधे हैं। हर पौधे की क्या खासियत और किस तरह की बीमारी में कारगर है, इसका भी विवरण संक्षिप्त में दिया गया है। इसी तरह नक्षत्रों के हिसाब से कौन सा पौधा लगाया जाना है, इसके बारे में भी लिखा गया है।
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