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मोबाइल तो नहीं संभाल रहा है आपकी कमान, ये उपाय आजमाएं और ख़ुद को मोबाइल का गुलाम होने से बचाएं

हम सोशल मीडिया में क्या देख रहे हैं, उससे कहीं ज़्यादा यह जानना ज़रूरी है कि किस तरह का कंटेंट देख रहे हैं। जो विचार, मूल्य और संदेश हम ग्रहण करते हैं, वे धीरे-धीरे हमारे चारों ओर की दुनिया को देखने का तरीक़ा बदल सकते हैं।

पिछले कुछ सालों में डिजिटल माध्यमों का चलन काफ़ी बढ़ा है। सोशल मीडिया पोस्ट, वीडियो, ब्लॉग्स, और न्यूज़ एप्स जैसे विभिन्न प्रकार के प्लेटफॉर्म्स पर लोग हर तरह का कंटेंट देख रहे हैं। इन तमाम तरह के कंटेंट ने लोगों की सोच, अनुभव और जीवनशैली को काफ़ी प्रभावित किया है। सोशल मीडिया पर कंटेंट काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहा है और हर पल नई दिशाओं में बदल भी रहा है। इससे लोगों के जीवन में जिस तरह के बदलाव आ रहे हैं, उनसे ज्ञान कम और समस्याएं अधिक पैदा हो रही हैं। आप पूछ सकते हैं कि कंटेंट से तो इंसान सीखता ही है, मुश्किलें क्या है? मुश्किल हैं, देखिए कैसी और क्या- कुछ प्रभाव भले लग रहे हैं, लेकिन...

1- ज्ञान का प्रसार तेज़ है

सोशल मीडिया के आज कई तरह के प्लेटफॉर्म्स उपलब्ध हैं जो विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्रदान करते हैं। इससे लोगों के ज्ञान और सूचना की उपलब्धता में काफ़ी वृद्धि हुई है। विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञों से कई तरह के विषयों की जानकारियां भी मिल रही है। लेकिन इन ज़रियों से ग़लत जानकारियां फैलाना भी उतना आसान है। जो सुप्रसिद्ध विशेषज्ञ हैं, उनसे मिलती सूचनाएं तो ज्ञान हैं, लेकिन कई अनजाने स्रोत भी हैं, जिनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है। इन प्लेटफॉर्म्स पर अफवाहें और ग़लतफ़हमियां ही नहीं, नफ़रतें भी तेज़ी से फैल रही हैं।

2- सामाजिक संपर्क में परिवर्तन

आजकल कंटेंट से लोगों के जीवन में सामाजिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर कई प्रकार के बदलाव हो रहे हैं। विभिन्न प्रकार के सोशल मीडिया माध्यमों से सामाजिक संपर्कों को एक नई दिशा मिली है। भौगोलिक दूरी की बाधाओं को कम करने के लिए लोग ऑनलाइन दोस्ती या रिश्ते बनाए रखते हैं जिससे उनका संपर्क बना रहता है। लेकिन ऑनलाइन संपर्क इतना ज़्यादा बढ़ गया है कि अब लोग व्यक्तिगत संपर्क में कम आ रहे हैं।

3- जीवनशैली में बदलाव

फिटनेस वीडियो, हेल्थ ब्लॉग्स, कुकिंग वीडियो और लाइफ हैक्स जैसे विभिन्न प्रकार के कंटेंट लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं और उन्हें अच्छी आदतें और नियमित जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ़ फास्ट एवं प्रोसेस्ड फ़ूड पर आधारित कंटेंट का प्रचलन भी काफ़ी बढ़ा है, जिससे कुछ लोगों में अस्वास्थ्यकर आदतें भी बढ़ रही हैं।

4- व्यवसायों की बढ़ती पहुंच

विभिन्न प्रकार के व्यवसायों और मार्केटिंग रणनीतियों के लिए भी सोशल मीडिया अच्छे माध्यम के रूप में उभरकर आया है। कंपनियां अब अपने उत्पादों और सेवाओं का प्रचार कंटेंट के माध्यम से लोगों के सामने कर रही हैं जिससे दूर बैठे ग्राहकों के साथ संपर्क बढ़ रहा है। लेकिन, सावधान न रहे तो लुभावने विज्ञापनों में फंसाकर धोखाधड़ी भी हो रही है।

सोच-समझकर करें इस्तेमाल

आपका अवचेतन मन एक सीसीटीवी सिस्टम की तरह है। यह हर दिन 24 घंटे, हफ्ते में 7 दिन, साल के 365 दिन चालू रहता है, और जो कुछ भी आप देखते व उससे सीखते हैं, उसे मॉनिटर और रिकॉर्ड करता है। उसका प्रभाव दिनभर आपके दिमाग़ में रहता है और दिमाग़ उसी के बारे में सोचता रहता है। इसलिए...

आत्म-नियंत्रण रखें- सोशल मीडिया खोलने से पहले, एक पल के लिए ठहरें और सोचें कि आप इसे क्यों इस्तेमाल करना चाहते हैं और इस अनुभव से क्या अपेक्षाएं हैं। चाहे प्रेरणा प्राप्त करनी हो या हंसना हो, एक उद्देश्य रखने से इसका उपयोग जागरुक रहकर करने में मदद मिलेगी।

जो देखेंगे वही दिखेगा- सोशल मीडिया पर आप जो भी खोजते हैं या किसी विषय पर एक-दो वीडियो देख लेते हैं, तो आपको उससे जुड़े कंटेंट ही नज़र आएंगे। इसलिए सोच-समझकर कंटेंट देखें। सोशल मीडिया पर सेंसिटिव कंटेंट कंट्रोल फीचर से भी सामग्री को नियंत्रित कर सकते हैं।

सक्रिय संलग्नता का अभ्यास करें- कोई नकारात्मक या नफ़रत भरा कमेंट करता है, तो उसे पलटकर जवाब देने में समय बर्बाद न करें। इसके बजाय, सोशल मीडिया के साथ सावधानीपूर्वक जुड़ने की कोशिश करें। सोचे-समझे कमेंट छोड़ें, सवाल पूछें और महत्वपूर्ण बातचीत में हिस्सा लें।

नकारात्मक प्रभावों का पलड़ा भारी हो रहा

अति में सोशल मीडिया का इस्तेमाल और बिना सोचे-समझे उस पर मौजूद सूचनाओं पर विश्वास कर उन्हें आगे बढ़ा देना या उनका ख़ुद अनुसरण करने लगना भी सामान्य होता जा रहा है।

  • मानसिक सेहत पर असर

तमाम तरह के सोशल मीडिया एक्सपोज़र से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है। आजकल ज़्यादातर सोशल मीडिया पर प्रतिस्पर्द्धात्मक सामग्री डाली जा रही है जिससे लोग अक्सर दूसरों की जीवनशैली और सफलता से अपनी तुलना कर रहे हैं। इससे मानसिक तनाव और आत्महीनता, कुंठा में कमी तेज़ी से बढ़ रही है।

  • ट्रेंडिंग का ज़हर

ट्रेंडिंग टॉपिक को फॉलो करने के चक्कर में और उनमें कुछ नया करने को लेकर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा है। इस प्रकार की कई घटनाएं सामने आई हैं, जब रील बनाते समय लोग दुर्घटना के शिकार हुए हैं।

  • स्वयंभू चिकित्सक

सोशल मीडिया पर लोग स्वयं ही बीमारियों को डायग्नोज़ करने लगते हैं। वे जब डॉक्टर के पास जाते हैं तब उन्हें ख़ुद ही बताने लगते हैं कि मुझे डिप्रेशन हो गया है, मुझे एंग्ज़ायटी हो गई है, ओसीडी हो गया है या फिर मैं बहुत टॉक्सिक रिलेशनशिप में हूं। दरअसल, वे अपनी बीमारियों को लेकर इंटरनेट पर सर्च करते हैं और सामग्री की विश्वसनीयता की पड़ताल किए बग़ैर सच मान लेते हैं। सोशल मीडिया पर रोगों को लेकर अधकचरी सूचनाओं का आदान-प्रदान होता रहता है।

  • भाषा अभद्र हो चली है

सोशल मीडिया पर लोग बदतमीज़ी करने लगते हैं, जैसे- किसी ने कुछ डाला तो लूज़र लिख दिया, किसी ने तस्वीर डाली तो कह दिया, रंग और रूप को लेकर नकारात्मक टिप्पणियां भी होने लगती हैं। गाली-गलौज तो आम-सी बात है।

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