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इंदौर में कैसे हुई इसकी शुरुआत गेर सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी फेमस है

इंदौर की प्रसिद्ध रंगपंचमी गेर के लिए 5 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं. 4 किलोमीटर के गेर मार्ग को 7 सेक्टर में बांटा गया है. मुख्यमंत्री डॉ .मोहन यादव भी शामिल होंगे. इसे लेकर पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए है.

इंदौर. मध्य प्रदेश के इंदौर की गेर सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी फेमस है. रंगपंचमी के अवसर पर इंदौर में निकलने वाली ऐतिहासिक गेर के आयोजन में पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया है. 4 किलोमीटर के गेर मार्ग में 5 हजार पुलिस अधिकारी कर्मचारी तैनात किए गए हैं. गेर मार्ग को 7 सेक्टर में बांटा गया है, जिसका प्रभारी एडिशनल डीसीपी स्तर के अधिकारी को बनाया गया है. वहीं मुख्य क्षेत्र रजवाड़ा पर डीसीपी स्तर के अधिकारी को प्रभारी बनाया गया है. शहरवासी और अन्य शहरों से आए लोग इस ऐतिहासिक उत्सव का आनंद ले सके इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए है. गेर मार्ग की सभी बिल्डिंगों पर भी पुलिसकर्मी तैनात किए गए है.

पूरे गेर मार्ग को नो व्हीकल जोन बनाया गया है, गेर मार्ग पर आने वाले सभी रास्तों पर बेरीकेडिंग की गई है. गेर में शामिल होने के लिए विशेष तौर पर प्रदेश के सीएम डॉ. मोहन यादव इंदौर पहुंचेंगे. इस दौरान किसी तरह का हुड़दंग न हो इस पर पुलिस की विशेष नजर रहेगी, हुड़दंगियों को तुरंत सबक सिखाया जाएगा. गेर में शामिल होने के लिए परिवार सहित पहुंचने वाले लोगों को सुरक्षा देने के लिए पुलिस पूरी तरह से तैयार है.

होली के 5वें दिन खेली जाती है गेर
चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. हालांकि मध्य प्रदेश के इंदौर में रंग पंचमी को गेर के नाम से जाना जाता है, जो पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी मशहूर है. इस साल रंग पंचमी 19 मार्च को मनाई जा रही है. बता दें कि रंच पंचमी पर इंदौर में होने वाली इस गेर की शुरुआत दशकों पहले हुई थी. इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं. इतना ही नहीं पूरा शहर एक साथ रंग खेलता है.

क्या होता है गेर?
गेर शब्द ‘घेर’ से निकलकर बना है. इसका मतलब होता है ‘घेरना’. बताते हैं कि 1945 में शहर के टोरी कॉर्नर पर होली खेलते समय लोगों को घेर कर रंग से भरी टंकी में डूबा दिया गया था. इसी से गेर की शुरुआत हुई. इसके बाद होली मनाने वाले हुरियारे सामूहिक रूप से एक दूसरे को रंग लगाने के लिए शहर की सड़कों पर जुलूस निकालने लगे. फिर ये धीरे-धीरे परंपरा में तब्दील होता चला गया.



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